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________________ 42 सप्तमांग-उपाशक दशा सूत्र 428 मरणासंसप्पओगे, कामभोगासंसप्पओग, ॥ ५॥ तएणंसे आणंदेगाहावइ समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए पंचाणुबईयं सत्तसिक्खावइथं दुवालसविहं सावगधम्म पडिवजहि २त्ता समणं भगवं महावीरं वदति नमसति, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी वल मे भंते ! कप्पड़ अजप्पभइओ. अण्णउत्थिएवा अणउत्थिय देवयाणिवा अणउत्थिय पंरिग्गहियाणिवाई चेइयाति १ वंदित्तएवा नमंसित्तएवा पुद्विअणालवतेणं आलवित्तएवा संलवित्तएवा, तेसिं असणं या पाणंवा खाइमंवा साइमंवा दाउवा अणुप्पमाप्ति की इच्छा करे ॥ ५७॥ (इस प्रकार ब्रतों को शुद्ध रखने भगवंतने आणंद को सम्यक्त्व मूल बारह बत अन्तिम सलेपना सहित ८५ अतिचारों का स्वरूप दर्शाया) तब आण नामक गाथापतिनै श्रमण भगवंत श्री महावीर स्वामी के पास पांच अनुव्रत सात शिक्षाबत रूप बारे प्रकार का श्रावक का धर्म अंगीकार किया. पण भगवंत श्री महावीर स्वामी को वंदना नमस्कार किया और यों कहने लगा. अहो भगवन् ! मुझे आज पीछे अन्य तीर्थकों को अथवा अन्य तीथिक के धर्मदेव शाक्यादि साधुओं, अथवा अन्य तीथिकने ग्रहण किये जैन के चैत्य-साधु भृष्टचारी को पंदना नमस्कार करना उनके बोल पहिले उन से बोलना वाम्बार बोलना, उन को अशन पान खादिम स्वादिम चार प्रकार का आहार १ बगाल देश के कल कत्ते की तरफ से प्राप्त हुइ जूनप्रित में ऐसा ही पाठ है. किन्तु अधुनिक प्रतों में बहुत स्थान “ अरिहंत चेइपाइ, ऐसा पाठ देखाता हे वह प्रक्षिप्त संभवता है. आणंद श्रावक का प्रथम अध्ययन 48 +8 | For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.600255
Book TitleAgam 07 Ang 07 Upasak Dshang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages170
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_upasakdasha
File Size18 MB
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