SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 32
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ maaaaaaaaaaaaawara अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी प्पमाणातिक्कमे, दुप्पयचउप्पय प्पमाणातिक्कमे, कुविय प्पमणातिकमे ॥ ४९ ॥ तदाणं तरंचणं दिसिव्वयस्स पंचअइयारा जाणियब्वा नसमायरियव्वा तंजाह-उद्वदिसि प्पमाजातिक्कमे, अहोदिसि प्पमणातिकमे, तिरियदिसि प्पमाणातक्कमे,खेत्तबुढीसइ, अंतरद्धा ॥ ५० ॥ तदाणं तरंचणं उवभोगे परिभोगे दुविहे पन्नत्ते तंजहा-भोयणाओय, कम्मओय ॥ तत्थणं भोयणाओ समणावासतेणं पंचअइयारा जाणियन्वानसमायरियव्या . परिमाण उल्लंघे, ४ धन-नगददाणा, धान्य-अनाज का परिमाण उल्लंघे और ५ कुप्प-घर के विखरे का प्रमाण किया हो उसे उल्लंघे ॥ ४२ ॥ तदनन्तर छठा दिशी व्रत के पांच अतिचार जाने परंतु आचरे उन के नाय-१ऊर्ध्व-ऊंची दिशा में गमन करने का परिमाण उल्लंघ, २ अधो-नीची दिशी में गम का परिमाण उलंघे, ३ तिरछी दिशी में गमन करने का परिमाण उल्लंघे, ४ पूर्वादि दिशी का प्रमाण पश्चिमादि दिशा में मिलाकर क्षेत्र की वृद्धि करे, और ५ परिमाण को भूलकर आगे जावे ॥ ५० ॥ तदनन्तर सातवा उपभोग परिभाग ब्रत के दो भेद उन के नाम-१ भोजन आश्रित और २कर्म आश्रित. भोजन आश्रित के पांच आतिचार जाने परंतु अदरे नहीं उन के नाम-१ सचित्त. वस्तु का आहार करे, १२ सचित्त प्रतिबन्ध (सचित्त से लगी हुइ) अचित्त वस्तु का आहार करे, ३ अपक्व वस्तु का आहार wwwwwwwwwwwwmarwas • प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवसहाय . wwwwwwwwwwww ज्वालाप्रसादजी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600255
Book TitleAgam 07 Ang 07 Upasak Dshang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages170
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_upasakdasha
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy