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तेणं पंच अइयारा पेयाला जाणियन्या नसमायारयन्वा, तं जहा-बंधे, वहे, छविच्छेए अतिभारे, भत्तपाणवोच्छेते ॥ ४५ ॥ तदाणं तरंचणं थूलगमुसावाते वेरमणस्स पंच अईयारा जाणियन्वा नसमायरिसन्वा तंजहा-सहस्सा भक्खणे; रहसाभक्खणे, सदारमंतभेए, मोसोवएसे, कूडलेहकरणे ॥ ४६ ॥ तदाणं तरंधणं थूलग अदिण्णादाण । घेरमणस्स पंचअईयारा जाणियन्वा नसमायरियन्वा तंजहा-तेनाहडे,तकरप्पओगे,विरूद्ध.
कर अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी+
अर्थ
• प्रकाशक राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी
धना, २ मजबूत प्रहार से मारना, ३ अवयव अंगोपांग का छेदन करना, ४ शक्ति उपरान्त बमन लादना, और ५ आहार, पानी का व्यच्छेद करना-भूखे-प्यासे रखना ॥४५॥ तदनन्तर दूसरे स्थूल वृषावाद' बेरमण व्रत के पांच अतिचार जाने पर आदरे नहीं उनके नाम-१सहसत्कार-जानकर किसीपर आल चडार दोषारोपन करना, २किसी की रहस्य-गुप्त वार्ता प्रगट करना,३खी के गुप्त भेद अनट करना, मिथ्या-झूट उपदेश देना, तथा खोटी साक्षी भरना, औरण खोटे लेख लिखना ॥४६॥तदनन्तर तीसरे अदत्तादान प्रत के 11 पांच अतिचार जाने परंतु आदरे नहीं, उन के नाम- चोर की चुराइ हुइ वस्तु लेना, २ चोरी का प्रयोग बताना, तथा चोर को सहायता करना, ३ राज्य विरुद्ध करे-राजा की आज्ञा [ कानून ] को उल्लंघना, ४ खोटा तोलना,खोटे मापना और५तत्मतिरूप अच्छी वस्तु में खराब वस्तु मिलाकर व्यवहार,
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