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सूत्र
असहिज देवसुर नागसुवन्न जक्ख रक्खस किन्नर किंपुरुष गरुल गंधव्य महारगाइ. एहि निगंथाओ पावयणाओ जाव अणतिक्कमणिजेणं, सम्मत्तस्स पंच आइयारा पेयाला जाणियव्वा न समायरियव्वा तंजहा-संका, कंखा,वितिगिच्छा, परपामंडप्पसंसा परपासंड संथवो ॥ १४ ॥ तदाणं तरंचणं थूलगपाणातिवाय वेरमणस्स समणोवास
सप्तमांग टाक दश सूत्र 488
रण वध इनके अतिचार पाताकरना अर्थात यह शिवितगिला करना पसंस्था
कार्य में कुशाल होमले जाने वाले हैं उनणित कथनपत्य है या संदेह लावे.
श्रमणो पासक श्रावक को जीव अजीव को जानना. पुण्य पाप को उपलब्ध करना, आश्रय संवर निर्जरा क्रिया अधिकरण बंध इनके कार्य में कुशाल होना, कदाचित देवता दानवादि धर्म से चलावे तो चलना नहीं और सम्यक्त्व के पांच अतिचार पाताल में ले जाने वाले हैं उनको जाने परंतु आदरना नहीं, उन के नाम-१ श्री जिनेश्वर के वचन में शंका का करना अर्थात् यह जिन प्रणित कथनपत्य है या मिथ्या है ऐमा विकल्पकरै, २ कांक्षा-अन्य तीथिकपना आदरने की इच्छाकरे,२ वितिगिछा-करनी के फलका संदेह लावे, तवा साधु की अस्नान वृत्ति की दुगंछा करे, ४ पाखंडियों के आडम्बर की परसंस्था करे अन्य काई मन उसतम की तरफ लगा और ५ पाखंडियों-मिथ्यात्वीयों या भ्रष्टाचारीयों का सदैव परिचय ईमित्रता करे ॥४४॥ तदनन्तर श्रावक को स्थूल ग्रथम प्राणातिपात वेरमण व्रत के पांच अतिचार पातल में लेजानेवाले जानना. किन्तु आदरना नहीं, उनके नाम-१बन्ध जीव (पशु मनुष्य) को मजबूत बंधन से
१. त्याग की वस्तु की-१ इच्छा करे वह अतिक्रम, २ लेने जोव वह व्यतिक्रम, ३ ग्रहण करे वह अतिचार, है और ४ भोगवे वह अनाचार.
8805 आणंद श्रावक का प्रथम अध्ययन 48
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