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________________ 嗌 अर्थ 4 सप्तांग उपाशक दशा सूत्र तप्पढमताते धूलयं पाणातिवायं पच्चक्खाति, जावजीवाए दुविहं तिविहेणं नकरेति कति मणा वयसा कायला ||१३|| तयाणं तरंचरं थूलयं मुसावायं पच्चक्खाति जात्र जीवाए दुविहं तिविहेणं नकरेति नकारवेति मणसा वयसा कायसा ॥ १४ ॥ तदाणं तरंचणं थूलयं अदिष्णादाणं पचक्खाति जाव जीवाए दुविहं तिविहणं करेति नकारखेति मणसा वयसा कायसा ॥ १५ ॥ तयाणं तरंचणं सदार संतोसिते परिमाणं करेति - ननत्थ एक्काए सिवाणंदाते माहियाते अबसेसं मेहुणविहं पच्चक्खाति बडे त्रस जीव की हिंसा करने के प्रत्याख्यान किये, जावजीव पर्यन्त दो करन और तीन योग करः दो करन मैं स्वयं त्रस जीव की घात करूंगा नहीं, और अन्य के पास सजीव की घात करावंगा नहीं, तीनजोग-मनकर, वचन कर, और कायाकर ॥ १३ ॥ तदनन्तर दूसरा व्रत स्थूल- बडा मृषावाद-झूट बोलने का प्रत्याख्यान किया जावजीव दो करन तीनयोगकर, मैं झूट बोलूं नहीं अन्य से झूट बोलवूं नहीं, मनसे वचन ते और कायासे ||१४|| वदन्तर तीसरा व्रत स्थूल-बडा अदत्तादान विनादी वस्तुलेनेका प्रत्याख्यान किया दो करन तीनजोगकर, उक्त प्रकार ॥१५॥ तदनन्तर चौथाव्रत स्वस्त्री को सन्तोषने मैथुन सेवन का प्रमाण किया, फक्त एक शिवान्दा भार्या उपरान्त अपरशेष मैथुन संवनका प्रत्याख्यान ||१३|| तदनन्तर पांचचात्रत Jain Education International For Personal & Private Use Only 4.38*- आनंद श्रावण का प्रथम अध्ययन www.jainelibrary.org
SR No.600255
Book TitleAgam 07 Ang 07 Upasak Dshang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages170
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_upasakdasha
File Size18 MB
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