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________________ ऋषिजी १ अमोलक 4 तहमेयं भंते ! अवितहमेयं भंते ! इच्छियमेयं भंते ! पडिच्छियमेयं भंते ! इच्छिय पडिच्छिमेयं भंते ! से जहेयं तुब्भे बयहत्ति कटु, जहाणं देवादेवाणुप्पियाणं अंतिए बहवेराईसर तलबर माडंबिय कोडंबिय सेट्रि सत्थवाह प्पभिईया मुंडे भवित्ता आगाराओ अणगारियं पव्वइया, नो स्खलु अहं तहा संचाएमि मुंडे जाव पव्वतित्त, अहन्नं देवाणुप्पियाणं अंतिए पंचाणूव्वतियं सत्तसिक्खावइयं दुवालस्सविहं गिहिधम्म पडिबज्जइस्सामि ॥ अहासृहं देवाणुप्पिया ? मापडिबंधं करेहि ॥ १२ ॥ तत्तेणं से आणंदे गाहावती समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतीए प्रकार आप कहते हो वैसा ही है, अवितथ्य-सत्य है, अहो भगवन् ! आपके वचन मैंने इच्छे हैं विशेष इच्छे हैं-चारम्बार चाह की है, जैसा आप फरमाते हो वैसा ही है, याद अहो देवानुप्रिया ! आपके पास बहुत से राजा युवराजा सेनापति कोतवाल मांडविय कुटम्बिय शेठ सार्थवाही व्यारीयों प्रमुख मुण्डित होते हैं, गृहस्थावास छोड साधु वनते हैं, परन्तु मैं तैसा मुण्डित होने, दीक्षा लेने, असमर्थ हूं. मैं तो देवानुप्रियके E पास पांच अनुव्रत सात शिक्षाव्रत यह बारह प्रकार का जो गृहस्थ का धर्म है उसे अंगीकार करना चहा ता हूं. भगवन्तने कहा. हे देवानुप्रिया! जिस प्रकार मुख हो वैसा करो परन्तु प्रतिबन्ध (बिलम्ब-ढील) मत करो ॥ १२ ॥ तब आनन्द गाथापति श्रमण भगवंत श्री महावीर स्वामी के पास-प्रथा व्रत स्लथू * प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालामसादजी . 48 अनुवादक-बालब्रह्मचारी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600255
Book TitleAgam 07 Ang 07 Upasak Dshang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages170
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_upasakdasha
File Size18 MB
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