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________________ - 42 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी ॥ १६ ॥ तदाणं तरंचणं इच्छापरिमाणं करेमाणे-हिरण्ण सुवण्ण विहिपरिमाणं करेति,ननत्थ चउहिं हिरण्ण कोडीहिं निहाण पउत्ताहि,चउहिं हिरण्ग कोड्डिहिं बडिपउत्ताहि, चउहिं हिरण्ण कोडीहिं पवित्थर पउत्ताहि, अवसेसं सव्वं हिरण्ण सुवण्ण विहं पच्चक्खाति ॥१७॥ तदाणं तरंचणं चउप्पयविहिं परिमाणं करेति, ननत्थ च उहिं वग्गेहिं दसगोसाहस्सिएणं वतेणं, अवसेसं सव्वं चउप्पयविहिं पच्चक्खाति ॥ १८ ॥ तदाणंतरचणं खित्तवत्थुविहं परिमाणं करेति, ननत्थपंचहिं हलसतेहि नियत्तणसतेण हलेणं अवससं सन्न खित्तवत्थु पञ्चक्खाति ॥१९॥ तदाणं तरंचणं सगडविहं परिमाणं इच्छा-तष्णा का परिमाण करना है जिसमें प्रथम हिरन्य-चान्दी का और सवर्ण-सोने का परिमाण किया। चारहिन क्रोड निधान में हैं, चार हिरन्य क्रोड व्यापार में हैं, चार हिरन्य क्रोड पाथारा विखरा है. यों बारे क्रोड के द्रव्य उपरान्त अपर शेष हिरन्य मुवर्ण के प्रत्याख्यान ॥१७॥ तदन्तर चउपद-पशू-जानवर का प्रमाण किया फक्त दश हजार गौका एक वर्ग ऐसे चार वर्ग (चालीस हजार गौ) उपरान्त सर्व प्रकार के चतुष्पद का प्रत्याख्यान ॥ १८॥ तदन्तर क्षेत्र खुल्ली भूमिका-खेत बगीचे आदि, बत्थु-ढकी भूमिका धरादि का प्रमाण किया फक्त पांचसो इलकी जमीन नियभित भूमी है. उससे अपर शेष सब क्षेत्रों वत्थु के प्रत्याख्यान *॥ १९ ॥ तदन्तर सगड-गाडा * भोक-दशकरे भवते बंश, वंशवीसे निर्वतन, निर्वतन शतमान हलं, क्षेत्र स्मते बुद्धे ॥१॥ अर्थात १० हायका *प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवमहायजी ज्वालाप्रसादजी mmmmmmm Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600255
Book TitleAgam 07 Ang 07 Upasak Dshang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages170
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_upasakdasha
File Size18 MB
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