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________________ मुनि श्री अमोलक ऋषिजी 22 भगवं महावीरे समोसरिए, परिसाणिग्गया, कोणिएराया जहा तहाजियसन्तु निगच्छइ जाव पज्जूवासइ ॥ ९ ॥ तएणं से आणंदे गाहावइ इमीसे कहाए लढे समाणे एवं खलु समणे जाब विहरइ, तं महाफलं गच्छामिणं समणं जाव पज्जुवासामि, एवं संपेहेइ २ त्ता हाए मुद्धमजावेइ २ त्ता सुद्धप्पवेसाइ ‘वत्थाई अप्पमहग्गा भरणालंकियसरिरा सयाओ गिहाओ पडिनिक्खमइ २ ता सकोरंट मल्लदामेणं छत्तेणं धरिजमाणेणं मणूस्स वग्गुरा परिक्खत्ते पायविहारचरेणं, वाणियगामं नयरं मझंभवित थे ॥ ८॥ उस काल उस समय में श्रमण भगवंत श्री महावीर स्वामी पधारे, परिषदा दर्शनार्थगइ, कोणिक राजा की तरह जितशत्रु राजा भी दर्शनार्थ गया, यावत् वंदना नमस्कार कर सेवा भक्ति करने लगे ॥ ९ ॥ तब आनन्द नाम के गाथापति को भगवंत पधारने की खबर मिली, उसे अवधारी-कियों निश्चय श्रमण भगवंत श्री महावीर स्वामी दुतीपलास चैत्य में यावत विचर रहे हैं वहां जाना यावत् उन की भक्ति करने से महाफल का कारण है. यों विचार किया, विचार कर स्नान किया शुद्ध मंजन किया। " उत्तम स्थान-शभा में प्रवेश करने योग्य अल्प भार वाले और बहुत मूल्प वाले वस्त्र भूषण धारन किये, इस प्रकार शरीको अलंकृतकर अपने घरसे निकला, निकलकर कोरंट वृक्षके फुलोंकी मालाका छत्र धारन .प्रकाशक-राजाबहादुरलाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादनी . ॐ अनुवादक-बालब्रह्म Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600255
Book TitleAgam 07 Ang 07 Upasak Dshang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages170
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_upasakdasha
File Size18 MB
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