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सूत्र
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46 सप्तपांग-उपाशक दशा सूत्र 48
॥ ५ ॥ तस्सणं आणंदरस सिवाणंदाणामं भारिया होत्था. अहीणा जाव सुरूवा; आणंदस्स इट्ठा, आणंदेणं गाहावतिणासद्धिं अणुरत्ता अविरत्ता इट्टेसद्दे-रूवे गंधे-रसे फासे पंचविहणं माणुस्सए कामभोगे पच्चणुब्भवमाणी विहरइ ॥ ६ ॥ तस्सणं वाणियगामस्स णगरस्स बहिया उत्तर पुरथिमे दिसीभाए एत्थणं कोल्लाएणामं संन्निवेसे होत्था, रिद्धत्थमिय समिद्धे जाव पासाइए॥७॥ तत्थणं' कोल्लाएणाम सन्निसे आणंदेणाम गाहावइ, तस्सणं आणंदस्स गाहावईस्स बहएमित्तणाति णियग सयणं संबंधि
परिजणे परिवसइ. अढा जाव अवरिभूया ॥ ८॥ तेणंकालेणं तेणंसमएणं समणे भूत, आलम्बन भृत, सर्व कार्यों में प्रवृतानेवाला था ॥ ५॥ उस आणंद गाथापति के शिवानन्दा नाम की
भार्या थी, वह पूर्ण अंगोपांग की धारक सुशीला, मुरूपवति, आनन्द को इष्टकारी, आनन्द गाथापति के के साथ अनुरक्त अत्यन्त प्रेमवन्त इष्ट-मनोज्ञ शब्द रूप गंध रम स्पर्श पांचों इन्द्रिय सम्बन्धी मनुष्य के
काम भोग भोगवती हुइ विचरती थी ॥६॥ उस वाणिज्यग्राम नगर के बाहिर ईशान कौन में तहां कोलाक नामका सन्निवेस ( महल्ला-पुरा) था, वह ऋद्धि युक्त चिसको अहलाद हर्ष का, उत्पादक दखने योग्य था ॥७॥ उस को लाके सन्नीवेस में आनन्द गाथापति के बहुत मित्रजन, ज्ञातिजन, स्वयं के सज्जन सम्बन्धी, सामाजिकजन व परजन दास दामी आदि रहते थे, वेभी ऋद्धिवन्त यावत् अपरा।
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आणंद श्रावक का प्रथम अध्ययन 488
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