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अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी +
पउत्ताओ, चत्तारि हिरण्णकौडिओ बुढिपउत्ताओ, चत्तारि हिरण्णकोडिओ पवित्थर पउत्ताओ, चत्तारि वया, दसगो साहस्सिएणंवएणं होत्था ॥ ४ ॥ सेणं आणंदेगाहावइ घहुणं राईसर जाव सत्थवाहाणं बहुसुकजेसूय, कारणेसूय, गूझसूय णिस्थएसूय ववहारेसूय. मंतेसूय, कुटुंबेसुय आपुच्छणीजे पडिपुच्छणिजे सयस्सवि य णं कुटंबस्स
मेढिप्पमाणे आहारे, आलंबण चक्खूभए(पाठांतर-मेढिभूए) सबकजबढावएयाविहोत्या. गायापति के चार हिरण्य की कोडी का द्रव्य निधान (जमीन) में गाडा हुवा था, चार हिरण्यकोडी वृद्धि करने में व्यापार में था, और चार हिरण्य क्रोडी का पायरा-घर विखेरा था. यो सब
श्रा. और चार वर्ग (ज)गाइयों के अर्थात् एक वर्ग दशहजार गायका होता है. इसप्रकार चालीम हजार गौओं जिन के थी ॥ ४ ॥ वह आणंद माथापति बहुत राजा ईश्वर [युवराज ] यावत् सार्थवाही प्रवृत्तिक (व्यापारीयों) इनोंके बहुत कार्यों में कारन में, गुप्तकामों में, निश्चय के काम में, व्यवहार के काम में, मंत्र-आलोचन-विचार करनेमें, तैसे अपने भी कुटुंब में भी आंखोसमान मेंढीसमान-स्थम्भ समान अधार
+ शास्त्र में हिरण्य नाम चांदी का कहा है. किन्तु यहां सर्व प्रती में अर्थकार हिरण्य कोडी का अर्थ सुवर्ण कोडी ( सुवर्ण मुद्रा-सोनेयेही ) लिखते है. वह बृद्ध परम्परा से कहते भी है.. .
. प्रकाशक राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी
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