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________________ १४ १५. सप्तमांग-उपाशक दशा सूत्र 4 - ॥ दशमम-अध्यनम् ॥ दसमस्स उखवा-एवं खलु जंबु ! तेणंकालेणं तेणंसमएणं सावत्थी नगरी, को?एचेइए, जिय सत्तुराया। ततणं सबस्थी नयरीए सालिहिपियानाम गाहावई परिवसइ, अड्डदित्त, चत्तारि हिरण्णकोडीओ निहाणपउताओ, चत्तारी हिरण्णकोडीओ बुड्डीपउताओ,चत्तारी हिरण्णकोडीओ पवित्थरपउताओ, चत्तारी क्या दसगो साहहिरिसणं वएणं, फग्गुणी भारिया,॥१॥ सामीसमोसड्डे. जहा आणंदो तहगिहीधम्म पडिवज्जइ, जंटुं पुत्तं ?वेइ, पोसहसालाए समणस्स भवओ महावीररस धम्म पण्णति उवसंपजिताणं विहरइ ॥ दशमा अध्ययन-यों निश्चय, हे जम्बू ! उस काल उस समय में श्रावस्ति नाम की नगरी, कोष्टक नाम का चैत्य, जितशत्रु नाम का राजा, तहां श्रावस्ति नगरी में मालिहीपिता नाम का गाथापति रहता +था, उस के चार हिरण्य कोड द्रव्य निधान में था, चार हिरण्य क्रोड द्रव्य व्यापार में था, चार हिरण्य क्रोड का पाथरा था, दश हजार गाय का एक वर्ग ऐमे चार वर्ग गौ के थे और फाल्गुनी नाम की भार्या थी ॥ ॥ श्रमण भगवन्त महावीर स्वामी पधारे अनन्द की तरह गृहस्थ धर्म अंगीकार किया, बड़े पुन को घर भार सुपरत कर पौषधशाला में महावीर स्वामी प्रणित धर्म अंगीकार कर विचरने लगा मालिहोगिता श्रावक का दशम अध 488 । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600255
Book TitleAgam 07 Ang 07 Upasak Dshang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages170
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_upasakdasha
File Size18 MB
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