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48 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी -
तएणं तस्स नंदिणीपियरस बहुमीलब्धयगुण जाव भावमाणस्स चोदस्स संवच्छराई वइक्वंताई तहेव जेतुपुत्तं ठवेइ, धम्मपण्णत्तिावीसंवासाई परियागं नाणात्तं, अरूणगवे विमाणो उपवाओ ॥ महाविदेहवासे सिझहिति ॥ ३ ॥ निक्खवो उवासग
दसाणं नवम अज्झयणं सम्मत्तं ॥ ९॥ जनपददेश विहार किया॥२॥तब मंदिनी पिता श्रमणोपासक जीवाजीवका जान हुवा, यावत् चौदह प्रकारका दाम देता विचरने लगा।॥३॥ तब नंदिनी पिता श्रमणोपासक को बहुत प्रकार प्रत पालते चौदह वर्ष व्यतीत हुवे पन्दवे वर्ष में एकदा धर्म जागरना जागते आनंद की तहर विचार हुवा तैसे ही बडे पुत्र को घरभार सुपरतकर पौषध शाला में महावीर स्वामी प्रणित धर्म धारन कर विचारने लगा, इग्यारे प्रतिमा का आराधन किया, एक महीने का संथारा हुवा, आयुष्य पूर्ण कर प्रथम देवलोक के अरुण गई बिमान मे देवता पने उत्पन्न हुवा, चार पल्यों की स्थिति, वहां मे महाविद क्षेत्र में जन्म धारन कर सिद्ध होगे ॥ इति मंदिनी पिता श्रावक का नववा अध्ययन समाप्तम् ॥९॥
.प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी .
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