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________________ मप्तमांग-उपाशक दशा सूत्र-482 ॥ नवमम्-अध्यनम् ॥ नवमरस उक्खवो, एवं खलु जंबु ! तेणंकालेणं तेणंसमएणं साचत्थी नयरी, कोटग चेइए, जिय सत्तुराया। तत्थणं सावत्थीए नंदिणीपिया न.मं गाहावइ परिवसइ, अड्डे; चत्तारि हिरणकोडीओ निहाणपउताओ, चत्तारी . हिरण्यकोडी बुढीपउताओ, चत्तारि हिरण्यकोडीओ पवित्थरपउताओ,चत्तारीवया दसगो सहस्सिणं वएणं, अरिसणी भारिया ॥ १ ॥ सामी समोसप्टे, जहा आणंदो तहेव गिहिधम्म पडिवज्जही ॥ सामी बहिया विहारं विहरइ ॥२॥ तएणं से नंदिणीपिया समणोवासए जाए जाव विहरइ ॥३॥ नववा अध्ययन, यों निश्चय अहो जम्ब् ! उस काल उस समय में श्रावस्ति नामे नगरी थी, कोष्टक नामका चैत्य था, जित शत्रु राजा राज्य करता था, ॥ तहां श्रावस्ति नगरी में नंदिनी पिता मामक गाथापति रहता था, वह ऋद्धिवंत यावत् अपराभक्ति था. उस के चार हिरण्य क्रोडी द्रव्य तो निधान में था, चार हिरण्य फोडी द्रव्य व्यापर में था, चार हिरण्य क्रोडी द्रव्य का घरबखेरा था, चार वर्ग माइयों के थे, अश्विनी नामकी भार्या थी ॥१॥ श्रमण भगवंत महावीर स्वामी पधार जिस प्रकार आनन्द गाथापतिने गहस्थ का धर्म अंगीकार किया उसही प्रकार इसने भी किया ।। तब महावीर स्वामीने बाहिर मंदिनापिता श्रावक का नवम अध्ययन 4887 anwarwanamanner Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600255
Book TitleAgam 07 Ang 07 Upasak Dshang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages170
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_upasakdasha
File Size18 MB
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