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2. णवरं निरूवसग्गा॥२॥ एक्कारसवि उवासग्ग पडिमाओ तहेब भाणियबा, एवं कामदेव
गमेणं नेयव्वं ॥ जाव सोहम्म कप्पे अरुणकीले विमाणे देवत्ताए उववन्ने, चत्तारी पलिओवमाट्रीइ, महाविदेह वासे सिज्झहिति ॥ ३ ॥ उक्खओ उवासगदसाणं दसमं अज्झयणं सम्मत्तं ॥१०॥ x
x इन को किसी भी प्रकार का उपसर्ग प्राप्त नहीं हुवा. इग्यारे श्रावक की प्रतिमा आराधन कर एक महीने की सलेषना से आयुष्य पूर्ण हो सौधर्म देवलोक के अरुणकिल विमान में देवता हुवा, चार पल्योपम की स्थिति, महा विदेह क्षेत्र में सिद्ध बुद्ध हो सर्व दुःख का अन्त करेंगे ॥ ३ ॥ इति दशा सालिहीपिता श्रावन का अध्ययन संपूर्ण ॥ १०॥
-०१ अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदवसहायजी ज्वाला प्रसादजी*
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