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________________ प्रत्र ananawarwwwwmarina १४२ अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋपिजी तहेव भणई जाव दोच्चंपि तचंषि एवं बयासी-हंभो ! तहेव ॥२४॥ तएणं से महासए समणोवासए रेवई गाहावाणीए दोचंपि तच्चपि एवं वन्ते समणे आसरुत्ते ४ ओहिं पउंजई २त्ता ओहिणा अमोइ २त्ता रेवइ गाहावणीए एवं क्यासी-हभारंवई ! अपत्थिय पत्थिए ४ एवं खलु तुम अंतो सत्तरत्तस्स अलसएणं वाहिणा अभिभूयासमाणी अट्ट दुहट्ट वस्सट्टा असमाहिपत्ता कालमासे कालंकिच्चा अहे इीस रयणप्पभाए पुढवीए लोलुयच्चुएस्स नरए चउरासीई वाससहस्स ट्ठिईएसु नेरईएन नेरइत्ताए उववजिहिसि ॥ २५ ॥ तत्तेणं सा रेवई गाहावईणी महासयए समणोवासएणं एवं वुत्ता समाणी क्यालाभ होगा?" ॥ २४ ॥ तब वे महाशतक दोवक्त तीनवक्त उक्त वचन श्रवनकर अमुरक्त हुवे क्रोधातुरबने अवधिज्ञानकर देखा, देखकर रेवती माथापतिनी से एमा बोले भो रेवति ! अपार्थ की मार्थनेवालो मृत्य की इच्छक, अपलक्षण की धरक, कालीचत शीकोजन्मी, लज्जाकर रहित यों निश्चय से तू आज से मातदिन आलस नाम की व्याघी (रोग)से पराभवाइ हुई आर्त ध्यान के वशहो दुःखसे पीडा पाती हुई असमाधी भाव से काल के अवसर में काल पूर्ण कर नीचे इम रत्नप्रभा नाक के लुलचुत नरकावास में चौरासी हजार वर्ष की स्थितिपने नेरियेपने उत्पन्न होगी ।। २५ ॥ तब वह रेवती गाथ पतिनी महाशतक प्रावक का उक्त वचन श्रवण कर भयभ्रान्त हुई मन से यों कहने लगी-महाशतक मुझ अर्थ काशक राजाबहादुर लाला सुखदवसहायनी ज्वालामरसादजी. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600255
Book TitleAgam 07 Ang 07 Upasak Dshang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages170
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_upasakdasha
File Size18 MB
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