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________________ 48 सप्तमांग-उपशाक दशा मूत्र 42 wwnwww.aniwwvwrimonian कंक्खमाणे विहरइ ।।२२॥ तएणं तस्स महासयगस्त समणोवासगस्स सुभेणं परिणमेणं जाव खओवसमेणं ओहिनाणे समुप्पण्णे,पुरस्थिमेणं लवणसमदे जोयण संहस्सखेत्तं जाणइ पासइ, एवं दक्खिणेणं, पञ्चत्यिमेणं, उत्तरेणं जाव चुलहिया वाग्लहरपवयं जाणइ पासह, अहे इमीसे रयणप्पभाए यढवीए लोलूयच्चुयं नरथं चौरासीवाल सहस्स द्विईयं जाणई पासई ॥ २३ ॥ तएणं सा रेवईगाहावइणी, अण्णयाकयाई मत्ता जाब उत्त। रेजयं विकड्नमाणी रजेणेव महासयए जेणेव पोसहसालाएतेणेव उवागच्छइ २ ना महासययं नहीं करता हुवा विचरने लगा ॥ २२ ॥ तब उस महाशतक को शुभपरिनाय की वृद्धिकर यावत् ज्ञानावरगिय कर्म के क्षयोपशमकर अवधिज्ञान उत्पन्न हुवा. जिस मे पूर्व दक्षिण और पश्चिम में लवण समुद्र में एक हजार योजन तक जानने देखनेलगा, उत्तर में चुल्लमवंत पर्वत तक जानने देखनेलगा ऊपर देवलोक और नीचे प्रथम नरक का लोलचत नरकावासा में चौराती हजार वर्ष की स्थितितक जानने देखने लगा ॥ २३ ॥ तब वह रेवती गाथापतिनी अन्यदा मदिरा मे उनमत्त बनकर यावत् शरीर के कपडे को नीचेडालती हुइ जहां पौषधशाला जहां महाशतक श्रमणोपासक था तहां आइ. आकर पूर्वोक्त प्रकार दोतीन बक्क बोली, " भो । महाशतक जो तुम मेरेमाथ भोगनी भोगबोगतो तुप को स्वर्ग मोक्ष से Mannanoonrmmonwwwmannousvowwwwwwnnnnnnnnnnnnnnnniwww रहाशतक श्रावक का अष्टम अध्ययन " For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.600255
Book TitleAgam 07 Ang 07 Upasak Dshang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages170
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_upasakdasha
File Size18 MB
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