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सूत्र
अर्थ
सप्तमांग- उपाशक दशा सूत्र 1064
सवाई भोग भोगाई भुजमाणी विहरिचएं, तं सेयं खलु मम एयाओ दुवालसवि "वतीयाओ अग्गपओगेणंवा, बिसप्पओगेगंवा, सत्यप्पओगेणवा, जीवियाओ ववरोवित्ता, एयासि एगमेगं हिरण्णकोडी समिधयं सयमेव उवसंपचिन्ताणं महासयएणं सद्धि ओरालाइ भोगभोगाई भुंगमणी त्रित्तिए; एवं संपेहेइ २त्ता तासिं दुबालसाए सवत्तीर्ण अंतराणिय छिद्राणिय विरहाणिया पडिजागरमाणी विहरह ॥ ८ ॥ तरणं सा "बई अण्णयाकमाई तासि दुवालसष्ट्रं सवतीगं अंतरं जाणीसा छसबत्तीओ सत्थ
{ जागरणा जागती हुई यावत् इस प्रकार का विचार उत्पन्न हुवा-यों निश्चय में बारह सौंकी के विघ्न करके महा शतक श्रमणोपासक के साथ औदार्य प्रधान ममुष्य सम्बन्धी भोगोपभोग भोगवती विचरने को, समर्थ नहीं हूं इस लिये मुझे इन बारह सौंकी को, अनिके प्रयोग कर, शास्त्र के प्रयोग कर, विष के प्रयोग कर जीवित रहित करना अर्थात मारना और उनका एकेकहिरण्य कोडका द्रव्य और एकेक गाइयोंका वर्ग मेरे स्वाधीन करके महाशतक के साथ औदार प्रधान उपयोग परिभोग भोगवती विचरना श्रेय है. ऐसा विचार करके उन बारे मौंकी का अन्तर छिद्र विरह देखती हुई प्रमाद रहित विचरने लगी ॥ ८ ॥ तथ वह रेवती अन्यदा किसी वक्त उन बारे सौंकी को अन्तर एकान्तपना, छिद्र मारने का मौका प्राप्त हति,
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4988 महाशतक श्रावक का अष्टम अध्ययन
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