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णिम्गंथाणं दिट्टि पडिवण्णे,तंगच्छामिणं सद्द लपुत्तं आजीविओवासयांसमणाणं निग्गंथाणं दिदिवामेत्ता, पुगरवि आजीवियदिदि गिण्णावित्तए तिकट्ट,एवं संपेहेतिरत्ता अंजीविये संघसंपरिवुडे जेणेव पोलासपुरे णगर जेणेक आजीवियसभा तेणेक वागच्छइ २ ता अजीवियसभाए भंडगणिक्खेवं करेति २ ता कितिवएहं अजीविएहिं सद्धिं जेणेव सहालपुत्ते समणोवासए तेणेव उवागच्छइ २त्ता ।। ३७ ॥ तएणे सहाणापुचे समणो वासए गोसालं मंखलिपुत्तं एजमाणं पासंति नो आढाइलि को परिजाणाई आणाढाईजमाणे अपरिजाणमाणे तुसभीए संचिटुंति ॥ ३८ ॥ तएणं से मोसाले मंखलिपुत्ते सदाल पुत्र को श्रमण निर्ग्रन्थ का धर्म का वमनकस [छोडाकर ] पुनरपी आजीविका पंथ धारन करावं, कयों विचार कर आजीविका संघ के साथ परिवरा हुवा जहां भेलास पुर नगर, जहां आजीविका * पंथीयों की सभा { स्थानक ] या तहां आया, आकर आजीविका पंथ की सभा में भंडोपकरण की स्थाप
ना कर कितनेक. आजीविका पंथीयों को साथ में लेकर जहां सहालपुष श्रमणोपासक था तहां आया ॥३७॥ "तब सदाल पुत्र श्रमणोपासकने आमीविका पंथी गोशाला को आता हुवा देखा, उस का आदर सत्कार
नहीं किया, अच्या भी नहीं जाना,, अनादर करता, अच्छा नहीं जानता. मौनस्थ रहा ॥ ३४ वा
4887 सप्तमांग-उपाञ्चक दशा सूत्र 488
4888 सालपुत्र श्रावक का सप्तम अध्ययन
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