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42 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी ?
अहासुहे जाव मपडिबंध करेह।।३३॥ तएणं सा अग्गिमित्ता समणस्स भगवओ महावीररस अंतीए पंचाणुबइयं जाव गिहधम्म पडिवजइ २त्ता समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ वं. दिसानमंसित्ता धम्मीयाजाणंदुरुहंति जामेवदिति पाउन्भया तामेवदिमि पडिगया॥३४॥ तएणं समणे भगवं महावीरे अण्णयाकयाइ पोलासपुराओ सहस्संबधण उज्जाणओ निग्गतिरत्ता बहिया जणवयविहारं विहरंति ॥२५॥ तएणं से सहालपुत्ते समणो वासएजाए अभिगय जीवाजीचे जाव विहरंति ॥ ३६॥ तएणं गोसाले मक्खलीपुत्ते ।
इमीसे कहाए लट्ठ खमाणे एवं खलु-सहालपुत्ते आजीवियसमयं धइत्ता समणाणं । चाहाती हूं. भगवंतने कहा जैसे सुख होवे वैसे करो यावत् विलम्ब मत करो ॥ ३३ ॥ तत्र अग्निमित्राने श्रमण भगवंत महावीर स्वामी के पास बाराव्रतरूप गृहस्थ का धर्म अंगीकार किया, श्रमण भगवंत महावीर स्वामी को वंदना नमस्कार कर धर्म रथपर आरूड हो जिस दिशासे आई थी उस दिशा पीछीगई ॥ ३४ ॥ तब श्रमण भगवंत महावीर स्वामीने अन्यदा किसी वक्त पोलासपुर नगर के सहश्रम्ब उध्यान से निकलकर बाहिर जनपद
जा में विहार किया ॥ ३५ ॥ तब सहालपुत्र श्रमणो पासक हवा जीवादिनवतत्वका जान हो चउदा प्रकार का दानदेता हवा विचरने लगा ॥३६|| तब गौसाला मेखलीपुत्रने श्रवण किया कि-निश्चय सहाल पुत्र आजीविका पंथ को छोडकर श्रमण निर्ग्रन्थ की री-धर्म अंगीकार किया है, इस लिये जायूँ मैं
. प्रकाशक-राज़ाबहादुर लाला मुखदव सहायजी ज्वालाप्रसादजी.
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