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________________ mmmmmmmmmmmaa सद्दालपुत्तेणं समोवासएणं अणाढाईजमाणे अपरिजाणमाणे, पीढफलगसिज्जासंथारएटाए समणरस भगवओ महावीरस्स गुणकित्तणं करेति॥३९॥ सद्दालपुत्तं समणोंवासयं एवं क्यासी-आगएणं देवाणुप्पिया! इह माहामहणे ? ॥ तएणं से सहालपुत्ते समणोवासए गोसालं मक्खलीपुत्तं एवं वयासी-केणं देवाणुप्पिया महामाहणे?॥ततेगंगोसाले मंखलीपुत्ते सदालफुत्तं सयणोवासएणं एवं क्यासी-समणे भगवं महावीरे महामाहणे ? से केणटेणं देवाणुप्पिया ! एवं उच्चति-समणे भगवं महावीरे महामाहणे?॥एवं खलु सदालपुत्ता?सम मे भगवं महावीरं महामाहणे उप्पण्णणाणदंसणधरे जाव महियपूइए जाव तवो कम्मं संपया गौशाला मखली पुत्र सहाल पुत्र श्रमणोपासक से अनादर पाया हुवा अमत्कार पाया हवा भी पाट पाटले स्थान बीछोना के लिये श्रमण भगवंत महावीर स्वामी के गुण कीर्तन करने लमा ॥३९॥ सदालपुत्र श्रावक से यों बोला हे देवानुषिया वहां महा महान(महादयालु)आयेथे क्या?सब मौशाला मखली पुत्रसे सदालपुत्रयों बोला-अहो देवानु प्रियाकौन महा महान? तब मोशाला मेखली पुत्र सहाल पुत्र श्रमणोपासक से यों बोला-श्रमण भगवंत महावीर स्वामी महा महान; तब'सहाल पुत्र बोला-अहो देवानुप्रिय ! किस कारण ऐसा कहा श्रमण को भगवंत महावीर स्वामी महाई महान ? | तब मोशाला मंखली पुत्र बोला-यों निश्चय, हे देवानुप्रिय ! श्रमण 18 भगवंत. महावीर स्वामी केवल ज्ञान केवल दर्शन के धारक यावत् तीन लोक के अंर्चनीक पूज्यनीक यावत्। तपा 48 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अयोलक ऋषिजी - प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदवसहायजी ज्वापिलदजासी * - Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600255
Book TitleAgam 07 Ang 07 Upasak Dshang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages170
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_upasakdasha
File Size18 MB
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