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अर्थ
488+ सप्तमांग- उपाशक दशा सूत्र
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॥ सप्तम् - उपासक दशाङ्ग सूत्रम् ॥
* प्रथम-अध्ययन
तेणंकालेणं तेणंसमएणं चंपाएनामं नयरीहोत्था वण्णओ, पुण्णभदेचेइए वण्णओ || ते काणं तेणंसमएणं अज्जसुहम्मे समोसरिए जाव जंबु पज्जुवा समाणे एकं वयासीजइणं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं आइगरेणं तित्थयरेणं जाक संपतेणं उस काल चौथे में और उस समय में (जिस समय में यह भाव प्रकाशे ) चम्पा नाम की नगरी थी, पूर्णभद्र नामे यक्ष का चैत्य बगीचे युक्त था, इन दोनों का सविस्तार वर्णन उववाई उपांग से जानना । उस काल उस समय में, आर्य-शरल स्वभावी बाह्याभ्यन्तर शुद्धाचारी श्रमण भगवंत श्री महावीर स्वामी के पांचवे गणधर श्री सुधर्मा स्वामी पधारे, गुणसिला चैत्य में यथाप्रतिरूप कल्पनिय अवग्रह ग्रहण कर तपसंयम से आत्मा भावते हुवे विचरनेलगे. परिषदा दर्शनार्थ आइ, धर्मकथा सुनाइ, परिषदा पछी गई तब
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4888 आनंद श्रावक का प्रथम अध्ययन
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