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छट्टुस्स अंगस्स णायधम्मकहाण अयमट्ठे पण्णत्ते, सन्तमस्त अंगस्स उवासगदसाणं के अट्ठे पण्णत्ते ? एवं खळु जंबु ! समणेणं जाव संपत्तेणं सत्तमस्त अंगस्स उवासग दसाणं दस अज्झयणा पण्णत्ता, तंजहा आणंदे, कामदेवे, गहावइ चुलणीपिया, सूरादेव, खुल्लसयए, गाहो वइ - कुंड कोलीए, सद्दालपुत्ते, महासए, नंदनिपिया, सालहीपिया ॥ १ ॥ जइणं भंते ! समणेणं जाव संपत्तेणं सत्तमस्स अंगस्स उवासगदसाणं दस अज्झअर्थ धर्मास्वामी के ज्येष्ट शिष्य आर्य. जम्बू स्वामी गुरु के अदर सामंत [ पास ] रहे हुवे संशय उत्पन्न हुवा तत्काल उठकर सुधर्मा स्वामी की पास आये वंदना नमस्कार कर प्रश्न पूछने लगे-यदि अहो भगवन् ! श्रमण भगवंत श्री महावीर स्वामी धर्मादि के करता, तीर्थ के करता यावत् मुक्ति प्राप्त हुबे उनोंने छठा अंग ज्ञाताधर्मकथा का यह अर्थ कहा वह मैंने श्रवण किया, आगे सातवा अंग उपासक दशा सूत्र का क्या {अर्थ कहां है ? यों निश्चय, हे जम्बू ! श्रमण भगवंत श्री महावीर स्वामी मुक्ति पधारे उनोंने सातबा { अंग उपासकदशा के दश अध्ययन कहे हैं, उन के नाम-१ आनंद का, २ कामदेव का ३ गाथापतिखुलणीपिता का, ४ सूरादेव का ५ चुल्लशतक, का ६ गाथापति-कुंड कोलिक का, ७ सकडाल पुत्र का, ८ महाशतक का, ९ नन्दनी पिता और १० साल ही पिता का ॥ १ ॥ यदेि अहो भगवन् ! श्रमण यावत् । मुक्ति पधारे उनोंने सातवे अंग उपासक दशा के दश अध्ययन कहे तो अो भगवद
42 अनुवादक - बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी
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* प्रकाशक - राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वाला प्रसादजी
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