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तहा जेटुं पुत्वं कुटुंबटुवित्ता, तहा पोसहसालाए जाय धम्मपणंति उवसंपनिसान विहरति ॥ एवं एकारस्स उवासम्ग पडिमातो ॥ तहेव सोहम्मेकप्पे अरुणझते विमाणे
जा अंतकाहिति ॥ १५ ॥ निक्खेबो उपासगदसाणं छटुं अज्झयणं सम्मत्तं ॥६॥ भीने की मलेपना की, साठ भक्त अनशन छक कर काल के अक्सर काल पूर्ण कर प्रथम सौधर्षा देव
सोक के अरुपवा विमान में देवत्तापने उत्पन्न हुवा, चार फल्योपम का आयुष्य पाया ॥ १५ ॥ सहा से मायुष्य का भव का स्थिति का क्षय कर महा विदेड क्षेत्र में अवतार ले सिद्ध बुद्ध मुक्त होगा ॥१६॥ निक्षेप वपासक दांग का सब कहना ॥ इति छठा कुंडकोलिक श्रावक का अध्ययन संपूर्ण ॥६॥
माम-उपासक दशा भून
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मासिक श्रावक का
बययन
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