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११ अनुवादक-बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋपिजी +
* सप्तम-अध्ययनम् * सत्तमरस उक्खेवी-पोलासपुरनासं नगरे, सहसंबणं उज्जाणं, जियसत्तुराया, ॥ १ ॥ तत्थणं पोलासपुरणयरे सहालपुत्ते नामं कुंभकारे आजीवितोवासए परिवसइ,आजीविय समयंसि लडढे, गहियटे, पुच्छियटे, विणिच्छियटे. अभिगयटे, अट्टिमीजापेमाणुरागरत्तेय; अयमाउसो! आजीवियसमए अटे, अयंपरमटे, सेसे अण?त्ति; एवं आजीविय समएणं अप्पाणं भवेमाणे विहरई ॥ २ ॥ तस्सणं सद्दालपुत्तस्स आजीवि उवासगरस सानवा अध्ययन का उक्षेप-उस काल उस समय में पोलासपुर नामका नगर था, तहां सह श्रम्ब नामका उध्यान था, जित शत्रु नामका राजा था ॥१॥ उम पोलासपुर नगर में सदालपुत्र नामका कुंभकार आजिविका पंथी (गोशाले के मतका उपासक) रहता था, आजीविक धर्मका अर्थ को ग्रहण किया था. संदेह सो पुच्छा था, नि:संदेह निश्चितार्थ हुवा था, ग्रहण किये अर्थमें विशेषज्ञ बना था,उसकी हड्डीयों मीजीयों है आजीविका पंथ में प्रेमानुराग रक्त वनीथी, वह कहता था हे आयुष्यमान! आजीविका धर्म है वही अर्थ है, वही परमार्थ है, इससिवाय शेष अनर्थ है, इस प्रकार आजीविका (गोशाले प्रणित ) धर्म में अपनी आत्मा को
। हुवा विचरता था ॥ २॥ उस सदाल पुत्र आजीविका के उपशाक के एक हिरन्य कोडी निधान ।
प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वाला प्रसादजी,
सभाव
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