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48 सप्तमांग-उपशाक दशा मूत्र +
छपवित्थरपउताओ,सव्वाओ गिहाओणीणेमि २ त्ता आलंभियाए णयरीए सिंघाडग जाव पहेसु सव्यओ समत्ता विप्पइरासि, जहणं तुमं अट्ट दोहट्ट वसट्टे अकालेचेव जीवियाओ ववरोवजसि ॥ ४ ॥ तएणं से चुल्लगसए तेणेदेवेणं एवं वुत्ते समाणे अभीए जाव विहरति ॥५॥ ततेणं से देव चुलगलयं अभीयं जाव पासित्ता दोच्चंपि तचंपि तहेव भणंति जाव ववरोविजासि ॥६॥ तएणं तस्स चुल्लगसयस्स तेणं देवेणं दोच्चंपि तच्चपि एवं वृत्त समाणे,अयमे प्र! रूवे अज्झथिए जाव समुपजित्था-अहोणं
इमे पुरिसे अणारिए जहा चुल्मणिपिता तहा चिंतेति जाव कणियसे जाव आइचति, यह छे हिरण्य कोही का दव्य निध्यान में है सो, छे कोडी व्यापार में है सो, और छ कोडी का बखेरा है मो यों अठाराही कोडी का द्रव्य ग्रहण कर इस आलंभिका नगरी के त्रीवट १ चौवट यावत् महा पंथ में चारों तरफ विखर देवूगा-फेंक देवूगा ; जिस से तू आर्तध्यान ध्याकर दुःखी हो अकाल मृत्यु पावेगा ॥ ४ ॥ तब चुल्लशतक उस देवताका उक्त वचन श्रवण कर डरा नहीं यावत् । धर्म ध्यान ध्याता विचरने लगा॥ ५ ॥ तब वह देव चुल्लशतक को निडरपने धर्म ध्यान ध्याता देख, दो वक्त तीन वक्त कहा तेरा अठारा क्रोड का धन विखेर देवूगा, जिस से तू अकाल मृत्यु पावेगा ॥६॥ तब चुल्ल शतक उस देव का. दो तीन वक्त उक्त बचन श्रवण कर यों विचारने लगा-अहो ।
चुल्लशतक श्रावक का पंचम अध्ययन 48
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