SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 102
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अर्थ 49 अनुवादक - बालवह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी उवसपजित्ताणं विहरति ॥ १ ॥ तणं तस्स चुल्लगसयगस्स पुवरन्त्तवरतकालसमयसी एगेदेवे अंतियं पाउ भवित्ता, जाव असिंग्गहाय एवं वयासी-हं भोच्च सयग्गा जाव नमजसि तो ते अज जेटुं पुत्तं साओ गिहाओ णीणेमी; एवं जहा चुलणीपियं. नवरं एक्वेक्क सत्तमंससोल्लया जाव कणियंसं जाव आइचामि ॥ २ ॥ तएवं से चुल्लसए अभीए जाव विहरति ॥ ३ ॥ एणं से देवे चुल्लसयं चउत्थंपि एवं वयासी हंभो चुल्लसयग्गा ! जाव नभंजसि तोते अज्र जाओ इमाओ छहिरण्णकोडीओ, णिहाणपउताओ, छबुडीपउताओ, में श्रमण भगवन्त महावीर स्वामी पास अंगीकार किया धर्म विशेष शुद्ध पालता विचरने लगा।।१ ॥ तत्र चुल्ल शतक के पास आधी रात व्यतीत हुवे एक देवता प्रगट हुवा, कामदेव के अध्ययन में कहा जैसा रूप बनाकर हाथ में खड्ग धारन कर कहने लगा-भो चुल्लशतक ! जो व्रत का भंग न करेगा तो तेरे बड़े पुत्र को तेरे सम्मुख मारकर उस के मांसके सात टुकडे कर कडाईम तलकर तेरे शरीर पर छांदूंगा. यों चुल्लनीपिताकी विशेष एकेक के सात २ टुकडे किये कडाइ में तलकर चुल्लशतक के शतक डरे नहीं यावत् धर्म ध्यान ध्याते हुवे विचरने लगे ॥ ३ ॥ तब यों बोला भी लशतक ! जो तू व्रत नहीं भंगेगा तो तेरा आज तरह तीनों पुत्रों को मारे, इतना शरीर पर छांटे || २ || तब चुल्ल वह देव चुल्लशतक से चौथी वक्त Jain Education International For Personal & Private Use Only * प्रकाशक - राजा बहादुर लाला सुखदेव सहायजी ज्वालाप्रसादजी * ९० (www.jainelibrary.org
SR No.600255
Book TitleAgam 07 Ang 07 Upasak Dshang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages170
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_upasakdasha
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy