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________________ अनुवादक- लब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी - छम्मासस्त, पजवसाणे एसणं आदिच्चे संवच्छरे, एसणं आदिच्चरम संवच्छरस्स पज्जवासणे ॥ ३ ॥ तासव्वाविणं मंडलवया अडयालीसंच एगठि भागे जोयणस्स वाहनेणं, सवाविणं मंडलंतरिया दोजोयणाति विक्खंभेणं ॥ . एसणं अहा एतासिय सए स पडिपुण्णा पंवदसुत्तर जायण सए आहितेति बदेजा, ता अभंतरातो मंडलवतातो बाहिरापडलवता, वाहिरामडलवतातो, अब्भंतरा मंडलबया एसणं अद्ध। पचदमुत्तर जोयण सते, अडयालसिंच एगट्ठीभागे संवत्मर व आदित्य मरसर का पर्यवसान हुवा ॥ ३ ॥ सब मंडल एक योजन के भाग में मे ४८ भाग जितने जाड हैं, सब मंडल का अंतर दो योजन का है. अर्थत् एक बंडल से दूसरे मंडल तक में हो योजन का अंतर रहा हवा है. मूर्य उक्त सब मार्ग १८३ रात्रि दिन में पूर्ण करे. ५१० योजन में जा. १८३ को दो योजन के अंतरमे गणाकार वरो मे ३०६ होवे और एकमठिये अडतालीम भाग से गणने से ८७८४ की राशि बनाकर ६१ का भाग देने से १४४ हार वह ३६६ में मीलाने से ५१० योजन होवे. आभ्यन्तर मंडल के अंदर के चरिमांत से बाहिर क मंडल के बाहिर के चरिमांत तक अथवा बाहिर के मंडल के बाहर के चरिमांत से आभ्यन्तर मंडल के अंदर के चरिमांन तक मर्य का मार्ग ५१० है योजन का होता है, यहां पर मूर्य के प्रथर मंइल को जाड इ ग्रहण की है. अभ्यंतर प्रकाशक-राजाकादर लाला सुखदेवमहायजी ज्यालाप्रसादजी. Jain Education Interational For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600254
Book TitleAgam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_chandrapragnapti
File Size8 MB
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