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________________ अस् सप्तदश चंद्रप्राति सूत्र-पष्ट उपाङ्ग 4 जोगणरस, एगमेगेणं मंडले विक्खंभ वुढिनिवडिमाणे २ अट्रारस जोयणाइ परिक्खवे वुट्टिणिवुट्ठिमाणे २ सवभिंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरति ॥ ता जयाणं मारिए सव्वब्भतरं जाव चा चरति, तयाणं सा मंडलवया अडयालीमंच एगट्ठी भागे जोयणरस वाहल्लेणं, गवणउति जोयण सहस्साइं छच्च चालिस जोयण सते आयामविक्खंभेणं, तिन्नि जोयण सय सहस्साई पण्णरस सहस्साति एगूण उर्तिच जोयण परिक्खवणं, तयाणं उत्तम कटुपत्त उक्कोसए अट्ठारस मुहत्ते दिवसे भवति जहाणिया दुवालस मुहुत्ता राई भवति ॥ एसणं दोच्च छम्मासे, एसणं दोच्च च.भाग अधिक बारह मुहूर्त का दिन है. इस तरह अंदर प्रवेश करता हुवा मूर्य अनंतर मंडल पर आता हुवा प्रत्यक मंडल पर ५ योजन की लम्बाइ चौडाइ व अठारह योजन की परिधि कम क हुवा सब स आभ्यन्तर मंडल पर रहकर चाल चलता है. जब सब से बाभ्यन्तर मंडल पर चाल चलता है तब वह मंडल एक योजन के एकसाठय अडतालीम भाग का जाडा है. उस की लम्बाइ चौडाइ ९१.६४० योजन की है और परिधि ३१००८९ योजन की है. उस समय अठारह मुहूर्त का दिन व बारह महून की रात्रि होती है. यह दूसरा छमास हुवा, यह दूसरा छमास का पर्यवसान हुवा. यह आदित्य 4227 पहिला पाह का आठवा अंतर पाहु। 4989 48 | . Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600254
Book TitleAgam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_chandrapragnapti
File Size8 MB
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