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संत्र
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सप्तदश चंद्र प्रनप्ति सूत्र षष्ठ-उपाङ्ग
जोयण अहिया, ता अभंतराए मंडलवाते. बाहिरा मंडलवता बा हराए मडलवताए अनंतरा मडलवता एसणं अद्धा पंचनवृत्तरे जायण सते तेरस एगट्ठीमागे जोयणस्स आहितेति वदेजा, अपराते. भेडलबताते, काहिराए मंडलवताए बाहिरा मंडल वया, अभंतरा मंडलवता अहा केवतियं आहितेति वदेजा, ता पंचद सुत्तरे जोयसते आहितेति वदेजा ॥ चंदपण्यत्तिस्ले पढमस्स अट्ठमं पाझुडं सम्मत्तं
॥ १ ॥ ८ ॥ इति पढम पाहुडं सम्मतं ॥ १॥ मंडल के काहिर के चस्मिांत से वाहिर के मंडल के अंदर के चरिमांत और बाहिर के मंडल के
दर के रिमांत मे अभ्यंतर मंडल के वाहिर चरिमांतर मूर्य का मार्ग ५०९योजन का होना है.
और आअपनर मंडल के अंदर के चरिमन से व बाहिर के मंडल के अंदर के चरिमांत से बाहिर के म मंडल के बाहिर के चरमांत तक और आभ्यन्तर मंडल के बाहिर के चरिमांत तक सूर्य का मार्ग:१० योजन
का कदाहै. यह दिला पाहडेका अठया अंतर पाहुडा संपूर्ण वा॥१॥८॥यह पहिला पाहुडा समाप्त हुव ॥२॥
पहिला पाहु का आठवा अंतर पहुहै। 42
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