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सत्र
4884 सप्तदश चन्द्रवज्ञप्ति सूत्र षष्ठ उपाङ्ग 4
ते एव माहंसु, जयाणं सूरिए सव्वमंतरं मंडलं उत्रसंकमित्ता चारं चरंति, तयाणं जंबूद्दीवं दिवं एगं जीयण सहस्सं एगच तेत्तिस जोयण सतं उग्गाहित्ता चारं चरंति, तयाणं उत्तम कट्टपत्त उक्कोसए अट्ठारस महुते दिवसे भवति, जहष्णिया दुबालस मुहुत्ताराई भवति, ता जयागं गरिए सम्बाहिरं मंडल उत्रसंकमित्ता वारं चरंति, तयालवण समुदं एग गण हस्सं एगंचतेतीस जोगणसतं उग्गाहिला चार चरंति, तयाणं उत्तम कटुपा उसिया अट्ठारस मुहुत्ता रात्ति भवति, जहणते दुवालस महत्त दिवसे भवति, एवं चोतसिं जोयणसतं, एवं पण्णत्तीसं जोयणसतं ॥ तत्थ जेते एवं माहंनु अत्रदिवं अवसमुदं उग्गाहित्ता मूरिए चारं चरंति ते
चलते हैं तब लवण समुद्र में ११३३ योजन क्षेत्र अवगाहकर रहते हैं. उस समय उत्कृष्ट अठारह मुहूर्त की रात्रि व जघन्य बारह मुहूर्त का दिन होता है. ऐसे ही एक हजार चौवीस व एक हजार पेंतीस योजन वाले का मत कहना. उस में जो ऐसा कहते हैं कि आधा द्वीप आधा समुद्र अवगाहकर सूर्य चाल चलते हैं उन का कथन इस प्रकार है कि जब सूर्य सब से आभ्यन्तर मंडल पर रहकर चाल चलते हैं तब आधा जम्बूद्वीप का क्षेत्र अवगाहकर चाल चलते हैं उस समय उत्कृष्ट अठारह मुहूर्त का दिन व जघन्य बारह मुहूर्त की रात्रि होती है. ऐसे ही सब बाहिर के मांडले पर रहकर सूर्य चाल चलते हैं तब आधा
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4 पहिला पाहुडे का पांचवा अंतर पाहुड
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