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________________ ऋषिजी - 4. अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनिक जोयणंसतं दिवंधा समुदंबा उग्गाहित्ता सरिए चार चरंति अहितेति वदेज्जा, एग एवं माहंसु॥१॥एगपुण एवं मासु ताएग जोयणहसरसं एगंच चोत्तीसं जोयणसतं दिवंवा समुदंवा उग्गाहित्ता सरिए चार चरंति एगे एवं माहं तु ॥२॥ एगे पुण एवं माहंसु ता एगं जोयण सहस्सं एगेच पणतीसं जोयणसत दीवा समुद्दबा उग्गाहित्त सूरिए चार चरति एगे एवं मासु ॥ ३ ॥ एगे पुण एवं मासु ता अवट्ठ दिवंवा समुदंवा उग्गाहिता सूरिश चार चरति एगे एवं माह ॥ ४ ॥ एग पुण एवं माहसुता नो किंचि दोधासमवा उग्गाहित्ता सरिए चार चरति.॥५॥ तत्थ जत एवं माहंसु ता एग जोयण राहस्सं एगंच तेत्तीस जोय सतं दिवा समुदवा उग्गाहित्ता मरिए चरं चरंति नेक ऐसा कहते हैं कि शाधा द्वीप ३ आध, समुद्र का क्षेत्र अवगाहकर मूर्य चाल चलते हैं, ५ कितनेक ऐसा कहते हैं कि किंचिन्यात्र द्वीप किंचिन्मात्र समुद्र अवगाहे विना सूर्य चाल चलते हैं ॥ १ ॥ इन पांच में से जो ऐसा कहते हैं कि एक हजार एक सो तीच गोजन द्वीप या समुद्र को अवगाहकर सू चलते हैं उन का कथन इस हेतु से है कि जब सूर्य मब से आभ्यन्तर के मरु के पास के मंडल रहकर चाल चलते हैं, तब जम्बूद्वीप का ११३३ योजन अवगाहकर चाल चलते हैं उस समय , अठारह समूहूर्त का दिन व बारह मुहून की रात्रि होती है. जव सूर्य सब से बाहिर के मंडल पर रहकर चाल प्रकाशक-राजाबहादूर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600254
Book TitleAgam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_chandrapragnapti
File Size8 MB
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