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सप्तदश चद्रं प्रज्ञप्ति सूत्र षष्ठ-उपाङ्ग
जीवाए मंडलं च उवीससतेणं छेत्ता दाहिण पुरथिमिलंसि चउभाग मंडलांस बाण उतिं सरियमंताई जाइं सरिए अप्पणो चेव चिन्नं पडिचरंति उत्तर पञ्चस्थिमिति च उभाग मंडलांस एकाण उति सूरियमंताई जाइं मुरिए अप्पणी चेव चिण्णं पडिचरति तथणं अयं भारहे सरिए॥२॥ एरवयस्त सरियस्ल जंबुद्दीवरस दोवस्स पाईण पडीणायताए उदीण दाहिणताए जीवाए मंडलं चउवीस
सतेणं छत्ता उत्तरपुरथिमिलसि च उभाग मंडलंसिं बाणउतिं सूरियमंयाइं जाई भाग के एक पंडल के १२४ भाग करके उस का विभाम करे. इस से प्रत्येक दिशा में एक २ मंडलके ३११ भाग रहे. इस तरह दक्षिण पूर्व अग्निकून के मंडल के ३१ भाग में सूर्य अब ९२ वे मांडले से नीकले तब भरत क्षेत्र का सूर्य भरत क्षेत्र में ही उद्योत करता हवा चले और उत्तरपश्चिम-वायव्यकून के मांडले के चौथे भाग में जब मूर्य ९१ वे मांडले से नीकले तब भरत क्षेत्र का मूर्य एरवत क्षेत्र में उद्योग करता हुवा नीकले. यही भरत क्षेत्र का सूर्य जानना ॥२॥ एरवत क्षेत्र के सूर्य के मंडल के १२४ गाग कर जम्बूद्वीप के पूर्व पश्चिम की लम्बाइ, उत्तरदक्षिण की जिन्दा से छेदकर उत्तरपूर्व के चौथे भाग में ५२ वे मांडलेस नीकलता हुवा सूर्य क्षेत्र अर्थात्-पूर्वमहाविदह क्षेत्र में उद्यात करता हुवा चले, दक्षिण पश्चिम के नैऋत्यकन के चौथे भाग में ९. वे मांडले से नीकलता मूर्य पर क्षेत्र सो पश्चिम पहावि.
+2+ पहिला पाहुडे का तीसरा अंतर पाहुडा
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