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________________ 42 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी जहा-भरहेचैव सूरिए एरवएचव सरिए । ता एएणं दुवे सरिया तीसाए २ मुहत्तेहिं .. एगमेग अद्ध मंडलं चरंति सट्ठीए २ मुहुत्तेहिं एगमगे मंडले चरंति संघतेति, तानिक्खम. माणे खलु एए दुवे सूरिया णो अण्णमण्णरस चिणं पडि चरंति, पविसमाणे खलु एए दुवे चेय सूरिया अण्णमण्णस्स चिण्णं पडिचरंति ॥ १ ॥ तत्थणं । कोहेउ वदेजा ? ता अयणं जम्बुद्दीवदीवे जाव परिक्खवेणं, तित्थणं अयंभरहे चव सूरिए जम्बुद्दीवरस दविस्स पाईण पडाणायताए उदीण दाहिणताए मुहूर्व में एकेक अर्ध मंडलपर चलते हैं, और साठ मुहूर्त में एकेक मांडले पर चलते हैं और साथ ही मांडले प्रतिपूर्ण करते हैं. वहां से नीकलते हो दोनों सूर्य परस्पर अपने क्षत्र व अन्य के क्षेत्र पर नहीं चलते हैं, परंतु १८४ मांडले में प्रवेश करते उक्त दोनों मूर्य अपने २ क्षेत्र पर चलते हैं अन्य क्षेत्र में प्रवेश करते उद्यात करे नहीं. क्यों की भरत क्षेत्र का मूर्य अग्निकोने के बकी मांडले स्पर्श और वायव्य कौन के एकी मांडले स्पर्श और एरवत क्षेत्र का मूर्य वायव्य न के बकी मांडल स्पर्श और अग्नि कौन के एकी मांडले स्पर्श॥१॥ यहां गतम स्वामी प्रश्न करते हैं कि इस में कौनसा हेत है ? उत्तर-यह जम्बूद्वीप नामक द्वीप यावत् परिधि वाला है. इस जम्बूद्वीप में पूर्व पश्चिम की लम्बाई व उत्तर दक्षिण की जिव्हा से चार . प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवमहायजी ज्वालाप्रसादजी , , Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600254
Book TitleAgam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_chandrapragnapti
File Size8 MB
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