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________________ श्रसू अर्थ 488+ सप्तदश चन्द्रमज्ञप्ति सूत्र- षष्ठ उपाङ्ग मंडल संटिई उबसंकममाणे २ दाहिणाए जात्र पदेसाए सव्वमंतरं उत्तरद्ध मंडलं संठि उवसंकमित्ता चारं चरति, ता जयाणं सूरिए सव्वमंतरं उत्तर अद्ध मंडलं संठि जाव चारं चरति तदाणं उत्तमकटुत्ते उक्कोमए अट्ठारस मुहुत्ते दिवसे भवति जहणिया दुवालस मुहुत्ता राती भवति || एसणं दोघे छम्मासे एसणं देोच्च छम्मासस्स पजवासणे, । एसणं आइच्चसंवच्छरे एसणं अइच्च संवच्छरस्स पज्जवासणे || पढमस्त बीअं पाहुडं सम्मत्तं ॥ १ ॥ २ ॥ * ता के ते चिन्हं पडिचरंति आहितेति वदेज ? तत्थ खलु इमे दुबे सूरिया पण्णत्ता Jain Education International ( को अंगीकार कर चाल चलता है. जब सूर्य सत्र से आभ्यंतर उत्तरार्ध मंडल की संस्थिति को अंगीकार कर चाल चलता है नत्र उत्कृष्ट अठारह मुहूर्त का दिन होवे और जघन्य बारह मुहूर्त की रात्रि होव. यह दूसरा छ मास हुवा यह दूसरा छ मास का पर्यवसान हुवा यह आदित्य, संवत्सर' हुवा यह आदित्य संवत्सर का पर्यवसान हुवा यह पहिला पाहुडा का दूसरा अंतर पाहुडा संपूर्ण हुवा. ॥ १ ॥ २ ॥ अब तीसरा अंतर पहुडा कहते हैं. प्रश्न - गौतम स्वामी प्रश्न करते है. कि इस जम्बूदीपमें कितने सूर्य प्रतिक्षेत्र चाल चलते हैं ? अर्थात् अपना या अन्य के क्षेत्र को अंगीकार कर चलते हैं ? उत्तर -- इस जम्बूद्वीप में दो सूर्य कहे हैं. १ भरत का सूर्य और २ एरवत का सूर्य. उक्त दोनों सूर्य अलग २ तीस २ ** For Personal & Private Use Only + पहिला पाहुड का तीसरा अंतर पाहुडा स ३३ www.jainelibrary.org
SR No.600254
Book TitleAgam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_chandrapragnapti
File Size8 MB
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