________________
सूत्र
अर्थ
42 अनुवादक बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी
अद्धमंडल संठिइ जात्र चारं चरति ताणं अट्ठारस मुहुत्ता राई भवति दोहिं एगट्टी भाग मुहुत्तेहिं ऊगे, दुबालस मुहुत्ते दिवसे भवति दोहिं एगट्टी भाग मुहुत्तहिं अहिया || से परिमाणे सृरिए दोसि अहोरत्तंसि उत्तराए जाव पदेसाए बाहिरं तच्चं दाहिणं अद्धमंडल संठिई जाव चारं चरति, ता जयाणं सुरिए बाहिरं तच्चं दाहिणं जात्र चारं चरति तयाणं अट्ठारस मुहुत्ता राई भवति चउहिं एगट्ठी भाग मुहु तेहिं ऊणे, दुबालस मुहुत्ते दिवसे भवति चउहिं एगट्ठी भाग मुहुत्तेहिं अहिए| एवं खलु एएणं उचएणं पत्रिसमाणे सूरिए तदाणंतराओ तदाणतरसि तंसि २ देसि तं तं अद्ध
Jain Education International
हूवा दूसरे छ मास की पहिली अहोरात्र में दक्षिण के मांडल की संस्थिति को अंगीकार कर चाल चलता है. दो भाग अधिक बारह मुहूर्त का दिन होवे. अब दूसरी
आभ्यंतर मांडल के प्रदेश से बाहर की उत्तर तब एकमठिये दो भाग कम की रात्रि हो और अहोरात्र में प्रवेश करते उत्तर के अर्ध मंडल के
प्रदेश से बाहिर का तीसरा दक्षिण का अर्थ मंडल की संस्थिति को अंगीकार कर यावत् विचरता है तब एक सठिये चार भाग कम अठारह मुहूर्त की रात्रि होती है और चार भाग अधिक बारह मुहूर्त का दिन | होता है. इसी तरह प्रवेश करता हुवा मर्य एक पीछे एक मांडला के उस देश में उस अर्ध मंडल सस्त
* प्रकाशक- राजबहादुर लाला सुखदेव महायजी ज्वाला प्रसादजी •
For Personal & Private Use Only
३२
www.jainelibrary.org