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श्री अमोलक ऋषिणी + 47 अनुवादक-चालब्रह्मचारी मुनि
सरिए परस्त चिण्णं पडिचरंति दाहिणपञ्चथिमिल्लंसि चउभागं मंडलसि एकागउति मरियमयाई, जाइं सूरिए परस्स चिण्णं पडिचरंति तत्थणं अयं एरवए सूरिए ॥ ३ ॥ जंबूद्दीवस्त दीवस्स पाईण पडीणायताए. उदिणदाहिणताए जीवाए मंडलं चउवीससएणं छत्ता उत्तर पञ्चथिमिल्लांस चउभाग मंडलंसि बाणउइ सरिय मयाइं जाइं सूरिए अपणो चेव चिण्णं पडिचरंति दाहिणपुरथिमिल्लंसि चउभाग मंडलंसि,एक्काणउत्ति सरिए मताई अपणो चेव चिणं पडिचरंति,तत्थणं अयं
एरवए सूरिए ॥ ४ ॥ भारहस्स सूरियस्स जंबूद्दीवस्स पाईणपडीण देह क्षेत्र में सूर्य उद्योत करता हुवा चले. यह एरयत का सूर्य कहा. जम्बूद्वीप की पूर्व पश्चिम की लम्बाइ से व उत्तर दक्षिण की जिदी मे मांडले को १२४ भाग से छेद कर उत्तरपश्चिम. वायव्य कून के चं विभाग में ९२ चे मांडले से नीकलता हुवा म अाना क्षेत्र एरवत क्षेत्र में उद्योत करता हुवा चले और दक्षिण पूर्व के [ अग्निकून ] के चौथे भाग में एकाण मांडले से नीकलता हुवा सूर्य अपना क्षेत्र भरत क्षेत्र में उद्योत करता हुवा चले. यह एरवत क्षेत्र का मूर्य हुवा ॥ ४ ॥ जम्बूद्वीप में पूर्व पश्चिम की लम्बाइब उत्तर दक्षिण की जिव्हां से एक मंडल के १२४ भागको छेदकर दक्षिण पश्चिम (नैऋत्यकून)
• प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी
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