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भी अमोलक सपिजी ।
सद्धिं अचिरत्त विवाह कजे अत्थगवेसणताए सोलसवास विष्पवासिते सेणं ततो लढे कातकजे अणह समए पुण विसयं गिप्हं हन मागते हाए जाब सरीरे विभूसिए मणण्णं थालि पाकसिद्धं अट्ठारस बंजणाउलं भोगणं समाणे तांति तारिस गमि बालघरंसि असितओ सचिन्द कस्मे वाहिरड दुमित घटुमदु विचित्तउलोय बिलगतिलेमानिरयण पणालयंधपारे, बहुसमरमणि शनिभागे पंचवण्णरस सुरभिमक पुप्फ पंजोबयारे कलिते कालागरूपवर कुंरुदक्क तुतकधूप मघमघातं
गंधूताभिराने सुंगधवरगंधिए गंधिवाहिए, तासि तारिसमांसि सपजिसि सालिंगणा अर्थ सारन में विजय या किसी का विधा नहीं आया. इस तरह करके अपने घर आया आकर स्नान किया, मॉलीकार्य किया, सब अलंदारविभूतिमा. पोश स्याल में पश्वास व व अठारह प्रकार के शाफ तहत भोज या. पोर पुल्यत का योग्य अंदर विच प्रकार के चित्रों वाला,बाहिर स्वच्छ करके अनेक प्रकार चित्रों साला,उपरपडे की छत वाला, रलो जडित भूलवाला, उज्जल उद्योतवाला, बहुत रमणीय भूमिभागमें पंचवर्ण रस सहित सुगंधित पक्ष्यों का ढग वाला, कृष्णवर्ण सुगधि द्रव्य व कुंघरुकादिक धूप से मघमघायमान सुगंधित पदार्थों सहित रहने के घर में पुण्यवंत प्राणि
प्रकाशक राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी.
अर्थ
अनुवादक-चालनमचारी
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