SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 420
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ wwwwwwwwwwwwhic सदश-चंद्र प्राप्ति मूत्र षष्ठ उपाङ्ग Katha जातिदस्स, जोतिसरेनो कतिअग्गमाहासिणी पण्णता?गोयमा तारि अग्गमाहिसीओ पपणत्ताओ तजहा-चप्पहा सदसणा अच्चिमालिणी, भंकरा॥ तत्थमं एगमेगाए देवीए चत्वारि २ सहस्तणं रूवं विउवित्ता एवं तंचव पव्व भणियं अटारसमे पाहडे तहामेयवं: जाब नो मेहनवत्तियं एवं सरस्सवि।।१६।। ता सरिय चंदमाणं जोतिर्सिद जोतिमरायाणो करिसए कामभोग पच्चणभवमाणा विहरति ? गोयमा ! से जहा णामए कतिपुरिसे पढम जोवणट्ठा बलत्थए । पढन जावट्ठाण वलत्याए ठाणत्थ चव भारियत्ताए ॥ १५॥ अहो भगवन् ज्योतिषी राना मोतिषी का इन्द्र चंद्र को कितनी अग्रपतिषियों क. १३ अहोगौतम ! चार अनडिपियों की. जिन के नाम-१ चंद्रप्रभा २ सुदर्शना, ३ चिमाली व ४ प्रभं-१० करा. एक २ इन्द्राणी चार २ हजार रूपका वैक्रर करे वगैरह अठरवे पहुडे में जैसे जीवाभिगम सूब की मादोदी यहां जानना. यवत् पैथन करे नहीं. जैसे चंद्र की चारों इन्द्राणी का कहा करे? ही मर्य का जानना. थुन नहीं करते हैं करना भगवती के दशो शतक के पांचवे उद्दशे में कहा है। ॥६॥ अहो भगान् ! गेतिषी के इन्द्र व ज्योतिषी के राजा चंद्र सुर्य कैसे काम भोग भोगते हुव विचर रहे हैं? अहो गौतम ! प्रथम यौवनावस्था में प्राप्त हुवा कोइ पुरुष प्रथम यौवनावस्था वाली भार्या की साथ विवाह करके तुस्त ही पन की पाति के लिये परदेश गया. वहां सोलर वर्ष पर्यंत सब aamanamammmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm पास पाहडा 4228. 42 For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.600254
Book TitleAgam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_chandrapragnapti
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy