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ऋषिजी.
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कामभोगेहिंतो वाणमंतराण देवाणं एतो अणंतगुणविसिट्टतरगाचेव कामभोगा वाणमंतराणं देवाणं कामभोगेहितो अमुरिंद वजियाणं भवणवासिणं देवाणं एतो अगंतगुण विति द्रुत्तरगा चव काममोगा असुरंदवजियाणं भवण जाव भोगस्तिो असरकुमाराणं एतो अणंतगुणा असुरकुमारदाणं कामभोगेहितो गहगणगखत्ततासरूवाणं जोइसियाणदेवाणं एतो अगंतंगणा लिमिटुतरमाचेच कामभोगा गहगणगक्खत्त जाय कामभोगेहिंतो चंदम सूरियाण जोतिसियाणं जोतिसरा याणं एतो अगतगुणा विमिट्टतरगाचेव कामभोगा, ता चदिम सूरियाणं जीतसिंदा जोतिमाणा एरिने काम भोगे पच्चणुभवमाणे विहरंति॥ १७॥तत्ध खलु इमा अट्टासीति
महागहा पण्णता तंजहा-इंगालए, वियालए, लोहिताए, सांगच्छर, आहुणिए, पाहुः । अथ
वाणगंतर के कान भोगों में अमुन्द्र छोड़कर शेष भवनकासी के कामभाग अति गुने विशिष्ठतर हैं. अन्य भवननामी के कपभोगों से अमुर कुमार के कामभोग अनंतगुने विशिष्टर, असुर कुमार के कामभोगों से ग्रह, नक्षत्र व ताराओं के कामभाग अन्तगुन विशिष्टनर है. ग्रहगण, नक्षत्र व ताराओं के कामभेगों से जो.तिथी का जा, ज्योतिषी का इन्द्र चंद्र सूर्य के कामभोगों अनंतगुन विशिष्ठतर भोगवते,
हु विचरते हैं ॥ १७॥ ज्योतिषी में 8 सी मह ग्रह के हैं जिन के नाम-१ अंगारक, २ विकालक, 121३ लोहिताक्ष, ४ शनिश्चर, ५ आधुनिक, मधुनिक, ७ कनक, ८ कनकनक, २ कणग, १० चियाणक,
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अनुवादक-धालब्रह्मचारी मुनि श्री अयोलक
• प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायनी वालाप्रसाद नी.
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