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________________ अनवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक षिजी ६१ * जयाणं पूरे गइ समावण्णे अभिइणक्वत्ते गतिसमावण्णे पुरत्थिमाए भागाए समामेति पुरे ता चत्तारि अहोरत्ते छच्च मुहुत्ते सूरेण साई जोगं जोतेति जाब विगत जोगियावि भवति ॥ ७ ता णक्खत्तेणं मासेणं चंदे कतिमंडलाति चरति, ता तेरस अभिजित नक्षत्र पते समापन होवे तब पूर्व दिशा के भाग से मूर्य साथ योग करे इस तरह ४ अहोरात्रि और ६ मुहूर्न पर्या सूरा साथ योग करे. इसी तरह छ नक्षत्र छ अहोरात्र २१ मुहूर्त सूर्य साथ योग करते हैं, जिन के नाम-शतभिषा, भरणी, आ, अश्लेषा, स्वाति और ज्येष्ठा. पन्नरह नक्षत्र तेरह से अहोरात्रि बारह मुहून मूर्थ साथ योग करत हैं, जिन के नाम-श्रवण, धनिष्ठा, पूर्वाभाद्रपद, रेवति, अश्विनी, कृत्तिका, माशर, पूष्प, घा, पूर्वाफलानो. हस्त, चित्रा, अनुगधा, मूल और पूर्वषाढा. और छ नक्षत्र २० अहोरात्र तीन मुहूर्त तक योग हैं, जिन के नम-उत्तराभाद्रपट, रोहिणी, पुनमु. उत्सराफाल्गुनी, पिशाबा और उत्तरापाढा. २१ पत्र अपने २ समय योग्य सूर्य साथ विचर कर बिगत योगी होते हैं ॥ ७ ॥ अहो भगान माम में चंद्र कितने मंडल चलता है ? अहो गौतम ! तेरह मंडल व एक मंडल के ६७ भाम से १३ भाग एक नक्षत्र मास में चंद्र चलता है. ए युग में नक्षत्र मास ६७ हैं और चद्र मंडल ८८४ हैं. जितने मास निकालना हो उतने माम मे ८८४ *को गुना करना और ६७ से भाग देना. जो आवे सो उतने मंडल जानना. यहाँ प्रथम मास का महल प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदव महायजा ज्वालाप्रसादजी . Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600254
Book TitleAgam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_chandrapragnapti
File Size8 MB
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