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________________ सप्तदश-चंद्र प्रज्ञप्ति सूत्र षष्ठ-उपाङ्ग 45 सत्तावीस च सत्तस्ट्री भागे महत्तस्स चंदण साह, जोग जोएति जणं अणपरि दृति २ त्ता विप्पजह त २ चा विगतजोगियाधि भवइ जयाणं चंदे गति समावणे भवइ सवणे खत्ते गह समायण सवइ पत्थिमात लहे। जहा अभिइस वरं तीस महत्ते च देण साई जोगं जोएलि जाव गिजोगियावि भवति एवं एतेणं अभिलारण यवं पारस महत्ताई दीसति महत्ताइ दयालीसति महत्ताई भाणियशनि मन उत्तरासादा विगत जोगियावि भवति । । ता ६७ ये पर्यंत चंद्र माथ रह... काल पर्यत उसकी साथ विचरे, पश्चात योग छोडकर विगत योगी होवे. जर चंद्र गति समापन हे वे और श्राण नक्षत्र गति ममापन्न होने तब अभिजित नक्षत्र जैसे पूर्व दिशा में चंद्र साथ तीम महू पयत योग करता है. इतना काल पर्यत उस की साथ विचरे. तत्पश्च त् विगत योगी होने, इस आमेलाप मे मन जानना. इन में कितनेक पसरह महून पर्यंत योग करते हैं, जिन के नाम-शभिषा, भरणि, अद्र, अश्ले, सात और ज्येष्ठा. ती मन पर्यंत योग करनेवाले नक्षत्र के नाम-श्रवण, धनेष्टा, पूर्वाभाद्रपद, रेवात, अश्विनी, कृत्तिका, गशर, पूष्य, मघा, पूर्वाफाल्गुनी, हस्त, चिला, अनुराधा, मूल और पूर्वाष ढा. पंतालीस मुहू पर्वत योग करनेवाले नक्षत्र के माम-- उत्तराभ-हद २ रोहिणी ३ पुनर्वसु ४ उत्तराफ ल्गुनी ५ विशाखा और ६ उत्तराषाढा. यो मम अमिना से उत्तष ढा पर्यन कहना यात गित योगी हैं ॥६॥ जब मर्य गते समापन्न है. और जब 48*48:0- पन्नावा पाहुडा र Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600254
Book TitleAgam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_chandrapragnapti
File Size8 MB
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