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42 अनुवादकालाचारीमुनि श्री अपेक ऋि
समावणे भइ सेणं गइमायाए केवइयं विंसेसेइ ता सससट्टी भागे विसेसे ता जयाणं सूरे गइ समावण्णे भवइ णक्खत्ते गइ समावणे मंत्रइ सेणं गति समायाए केवइय विसेसेइ ? ता पंच भागा विसेसेइ ॥ ५ ॥ ता जयाणं चंदे गति समावण्णग अभिइ नक्खत्तें गइ समबान्नग पुरत्थिमताए भागाए समासेति ता जत्र मुहुते गति संपूर्ण करे तब सूर्य भी मुहूर्त के चरमान में गति संपूर्ण करे. इन दोनों में सूर्य की गति में मर्यादा से क्या विशेषपना है. अर्थात् चंद्र से सूर्य एक मुहूर्त में कितना अधिक चलता है ? अहो गौतम ! मुहूर्त के चरम समय में चंद्र मे सूर्य एक मंडल के १०९८०० भाग में से ६२ भाग आगे चले इतना सूर्य का विषय अधिक कहा. अहो भगवन् ! चंद्र एक मुहूर्त में गति संपूर्ण करें, वैसे ही दशत्र एक मुहूर्त में गति संपूर्ण करे तो इस में चंद्र से नक्षत्र कितना भाग आगे चले ? अहो गौतम ! क मुहूर्त के चरम समय में चंद्र से नक्षत्र एक मंडल के १०९८०० भाग में के ६७ भाग अधिक अग चल. इतना विषय नक्षत्र का जानना. अहो भगवन् ! जैसे सूर्य एक मुहूर्त में गति संपूर्ण करता से ही नक्षत्र एक मुहूर्त में गति संपूर्ण करता है. इस तरह गति संपूर्ण करने में क्या विशेषता है ? अर्थात् कितना अधिक नक्षत्र चलता है. अहो गौतम ! के १०९८०० भाग में के पांच भाग सूर्य मे नक्षत्र अधिक चके ॥ ५ ॥ चंद्र गाते अभिजित नक्षत्र भी गति समापन्न होते तो पूर्व दिशा के भाग से योग ग्रहण कर,
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एक मंडल समपन्न होवे और नत्र मुहूर्त २७ भाग.
● प्रकाशक - राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी ०
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