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अर्थ
4 अनुावदक- बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिनो
युग की आदि के प्रथम समय में सूर्य योग करता है. छ ऋतु में प्रावृत् ऋतु के दो भाग करना, इस में दूसरे भाग का प्रथम समय युग की आई में होवे, और प्रवृऋ के चरम समय का सूर्य युग के अंत में होवे. इस से सूर्य की साथ युग की आदि में प्रवृ ऋतु कहो. सूर्य एक युग में पांच नक्षत्र पर्याय भोगता है। इस से पांच को छ गुना करने से तीस ऋतु एक युग में होके चंद्र युग की आदि में अभिजित नक्षत्र से योग करता है इस से चंद्रमा की ऋतु कही एक युग में चंद्र ६१ नक्षत्र पर्याय भोगता है, इस से
साथ युग की आदि में हेमंत एक युग में ४०२ ऋतु हुई. अब यहां प्रथम राशि के
चंद्र ऋतु संपूर्ण होवे तब कितने पर्व व कितने दिन हो, यह नीकालने की विधि.
आंक लेना. ६१३०५, ९४५५, १८२१०, ये तीन अंक जानना. जिसकी समाप्ति नीकालने की होवे उस ऋतु के आंक को तीसरी ध्रुव राशि के आंक से गुनना- दूसरी राशि के अंक बाद करना, शेष जो आंक रहे उसे प्रथम राशि के अंक से भाग देना. जा भाग आवे उन्ने पर्व शेष रहे, उतने ६७ ये भ ग जानना. फर उसे ६० का भाग देते तो रहा सो ६९ या भाग. जो शेष रहा हो ६७ या भाग, फर उस को ६९ से भाग देने जो भाग आवे सो तिथि और शेष रहे सो ६१ या भाग. द्रष्टांत प्रथम ऋतु कौनसे पर्व में कौनसी तीथी में संपूर्ण होते ? १ + १८९१०= १८९१० - ९४५५=१४५२÷६३१३०५ भाग नहीं चलता है, शेष १४२६÷६७ = १४१४. करने को ६१ से भाग देन १४१÷ इस तरह प्रथन ऋतु का चरम लमय प्रथम पक्ष की तीसरी तीथी को १९ भाग ६१ ये ८
१४१ को तीं
६१=
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प्रकाशक-राजावहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी •
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