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________________ 42 ६१३.५ होवे. इम में टू-रीपुराशि १४५५ मिलाने से ७०००० होवे. इस को तीसरी धृत १८११० से भाग दे से तीन ऋत व्यतीत शेप १४.३० रहे. रस १७ का भाग देने से २.. भाग ६२ य ६२५२७ रहे: ८९ को ६२ का भाग देने सीन दिन आये, शेष २३ भाग ६२ ये रह. इस तरह प्रथप प के चरम समय में चर्थ ऋरक तं न दिन २३ भ ग ६२ ये २७ भग १७ य का चरम सय मर्ने.सही बातो पर्व का ४६१३.५% १२६१००+१४.५%3D१२३५५५५ १८११०:५ऋन व्यतीत हुई. २५६४० भाग ६७ ये रह, इसके ६७ का भाग देने से ९५ भाग १६२ ये अ.ये. शेष ४० भाग ६५ ये रहे, इस ९५ को ६२ का भाग ने एक दिन व देष ३३ भाग ६२ या रहा. इस से बसा पर्व के चरम सय ६३ वी मर का एक दिन ३३ भाग ६२ या ४. भग ६७ ये का चरम समय व. ए है। सर जानना. इस तरह शान का आंक पूर्ण करणे ६से भाग देन शेष जी रहे वही मनु मानना. जिनके नाम-१३ ऋभु २वत ऋतु प्रम ऋतु ४ प्रवृट् Eऋ५ वर्ष ऋतु और ६ शरद ऋ. ये छ ऋचंद्र सय प्र, मन-मूर्ग स थ प्रथम दृट् ऋ: ग्रहण की और द्र साय प्रथम हेमंत ऋा ग्रहण की उस में क्या काम है ? उत्तर-एक नक्षत्र पर्याय चंद्र ऋतु भेगता है. हेमंत ऋत के दो भाग करना, जिस । दूसर भाग के प्रथम सपयसे अभिजित नक्षत्र का प्रारंभ होता है, यों अनुक्रा से मंगा हुवा इमंद ऋतु के चम समय में उत्तराषाढा नक्षत्र का चरम समय होकर नक्षत्र पर्याय पूर्ण हाये, नक्षत्र पर्याय का दो भाग करना, इस में दूसरे भाग के प्रथम समरा बरहना पड्डा 243 For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.600254
Book TitleAgam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_chandrapragnapti
File Size8 MB
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