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________________ 11 उमरत्ता चंदाहि भवति मागेहं ॥ तस्थ रूलु इमातो पंचवासिकिओ पंचमतायो । का. एक प १५ ने थो का है और एक नयी १२ : ३१ भाग को है. इस ६१ को १५ १९१५ भाग ६२ यो, इस ६.३२ ये ग करन के ६७ म ग कानानिय ६१३०० भाग ६७ ये Jहोचे इससे यह प्रथा धागाशे हुई. एल्यु की अहास । ३४ भाग ६२ र १६ भ ग ६७ या की हैं. चार अहोरात्र क ६२ भ ग २४८ है, उ7 में३४लन से ८२ करे. इसके . य भाग १२.८८१४ हाये उनमें १६ मीठाने १८११.०६. प्रथ- अर्थ सा गा गुम भागत. मे इन के आधे भाग कर मे १४२५ भाग ६७यहुए. इन स दूसरीधा १४२ का हुई. अब तीसरी धुन राशि-एक ऋत् १८११० भाग ६१ की हैं. इसमें यह न स घरशिहुई अमक पर्व में कौनसी ऋनु पर्ने यह जानने के ये पर्व को प्रस्य प्रजाशि कम गुग करता जो आंक वे उस दूपर भागोश का आंकमीला धीर नीमन धाराव से भाग दना. जो आवे उतने पर्व यत हुो जानना और जोष है उ-६७ य भाजन .77 का ६२ ग भाग करन को ६७ मे है भाग देना जा असे उदय भान और शेप स ६५य भ.ग उ६२ये भग के दिन करने को ६२ भाग देन जो भा आवे वे दिन जाना. दृष्टांत प्रस पर्व में कितनी 17'व्यतीत हुई ? और कौनसी ऋतु प्रतिी है ? एक को ६१३०५ से गुनने A अनुवादक-चालब्रह्मचारी ने श्री अमालक ऋषिजन प्रकाशक राजाबहादुर लाला मुखदवसायजा वालप्मादमी. । Jain Education Interational For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600254
Book TitleAgam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_chandrapragnapti
File Size8 MB
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