________________
428
र
सप्तदश-चंद्र प्रज्ञप्ति सूत्र षष्ठ-उपाङ्ग
त्थि अट्ठारस मुहुत्ताराई, अत्थि दुवालस मुहुत्ता राई पत्थि दुवालस मुहुत्ते दिवसे भवइ ॥ पढमेवा छम्मासे दुच्चेवा छम्मासे णत्थि पण्णरस मुहुत्ते दिवसे भवति,णत्थि पणरस महुत्ताराई भवइ॥६॥तत्य का हेउ?अयण्णं जंयूद्दीवेहोवे सबद्दीव समुदाणं सव्व
भतराए जाव विसेमाहिए परिक्खेवेणं पण्णत्ते ॥ ताजयाणं सरिए सबभतरं मंडलं उवरुकमित्ता चारं चरति तयाणं उत्तम कट्टपत्ते उक्कोसेणं अट्ठारस महुत्ते दिवसे भवति,
तयाण दुवालस महुत्ता राई भवति, से निक्खममाणे सूरिए णवं संवच्छरं अयमाणे होता हैं तु अठारह मुहूर्त की रात्रि नहीं होती है और बारह मुहूर्त की रात्रि होती है परंतु वारह मुहूर्न का दिन नहीं होता है अर्थात् इस में अठारह मुहूर्त का दिन व बारह मुहूर्त की रात्रि होती है. प्रथम
छ मास अधवा दूसरे छ मास अर्थात १८४ वे मांडले पर अथवा पहिले मांडले पर पथरहे 'मुहू का दिन नवरात्रि नहीं होती है ॥ ६ ॥ प्रश्न-इस का क्या हेतु है ? उत्तर-यह जम्बूद्वीप नामक द्वीप सब
द्वैप समुद्र के बीच में रहा हुया है. एक ल.ख योजन का लम्बा चौडा है, तीन लाख तोलह हजर दो सो सत्तावीस योजने, तीन कोश,एक सो अठावीस धनुष्य, साढी तेरह अंगुल से कुछ अधिक परिधि है.इस में जब 80 सब से आभ्यन्तर-अदर के (मेरु पर्वत के पास के).मांडल पर सूर्य आकर चाल चलता है तब उत्तम
अर्थ
पहिला पाहडे का पहिला अंतर पहुडा 48
48
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org