SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 32
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १ अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी + पढ़मंसि अहोरत्तंसि अन्तराणतरं मंडलं उवसंकमिता चारंचरंति ता जयाणं सूरिए अभंतगणंतरंमंडलं उवसंकमित्ता चारं चरति तयाणं अट्ठारस मुहुत्ते दिवसे. भवति, दोहिं एक? भाग मुहुत्तेहिं ऊगे दुवालप्त मुहुत्ता राई भवइ,दोहिं एगट्ठी भाग मुहुत्तेहिं अहिया.से निक्खममाणे सरिए दोच्चंपि अहोरत्तंसि अब्भंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरति, ताजयाणं सरिए अब्भंतरं तच्चं मंडलं उवसंकमित्ता चारंचरति तयाणं अट्ठारस मुहुत्ते दिवसे भवति, चउहिं एगट्ठी भाग मुहुत्तेहिं ऊणे दुवालस मुहुत्ता काष्ट प्राप्त अर्थात् कर्क संक्रान्त को उत्कृष्ट अठारह मुहूर्त का दिन होता है और बारह मुहूर्त की रात्रि होती है. फिर उस प्रथम मंडल से बाहर नीकलता हुआ दूसरे मांडले में प्रवेश करे तब नया सूर्य संवत्सर होवे और नयी अयन स्पर्श, उस ममय अहोरात्रि में सब से आभ्यंतर जो पहिला मांडल उस से अनंतर दूसरा मांडला उस पर जाकर चाल चलता है. जब सूर्य दूसरे मांडले पर चाल चलता है तब अठारह मुहूर्त में एकमठिये दो भाग कम दिन अर्थात् १७५, मुहूर्न का दिन होवे और १२ , भाग की रात्रि होवे. वहां से नीकलता हुवा सूर्य प्रथप अयन की दूसरी अहोरात्रि में तीसरे से प्राभ्यन्तर मांडले पर चाल चलता है. जब आभ्यन्तर तीसरे मांडले पर सूर्य चाल चलता है तब अठारह । प्रकामाक-राजाबहादुर लाला मुखदव महाथकी चालाप्रसादजी, For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.600254
Book TitleAgam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_chandrapragnapti
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy