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________________ अर्थ श्री ममश चंद्र ता जेणं पदमस्त चंद संत्रच्छरस्स आदि सेणं पंचमन अभिवडियस्स संवच्छरस्स पज्जवासणे अनंतर पच्छाकडे समये तं समयं वगं चंदेकेणं णक्खत्तेणं जोगं जोति ॥ ता उत्तरहिं असाढहिं उत्तराणं असाढाणं चरम समये तं समयं चणं सूरे के लक्खत्तेण जागं जोतेति ता पुसेणं एगुणवीसं मुहुत्ता तेत्त लीसंच बाबट्टी भागा सत्तसडिया मुहुस्प बावट्ठी भाग च छत्ता, तेत्तीसं चुणिया आगा सेसा ॥ इति एकारसमं पाहुडं सम्मतं ॥ १ १ ॥ Jain Education International X कापसान है. अहो भगवन् ! पांचवा अभिवर्धन संत्र के चम समय में चंद्रमा कौनसे नक्षत्र की साथ योग करता है ? अहो गौतम ! उत्तराषाढा नक्षत्र की साथ योग करता है. यह चरम समय में योग पूर्ण करके पांचवा संवत्तर पूर्ण करे. शेष नक्षत्र रहे नहीं. उस समय सूर्य कौनसे नक्षत्र की साथ योग कर ! अहां गौतम ! उस समय सूर्य पूष्य नक्षत्र की साथ योग करे. यह चंद्र नक्षत्र १९ मुहूर्त ४३ भाग ६२ ये ३३ भाग ६७ ये सूर्य की साथ शेष रहे तब और सूर्य नक्षत्र २६४ मुहूर्त शेष रहे तब पाँचमा अभिवर्धन संवत्सर संपूर्ण हो. इस की विधि पूर्वोक्त जैसे जानना. परंतु दूसरी धनराशि का ६२ से गुना करना क्यों कि पांचवा अभिवर्धन संवत्सर ६२ मास में पूर्ण होता है. यों चंद्रप्रज्ञप्ति मंत्र का इम्यारहवा पाहुडा संपूर्ण हुवा || ११ || ० • For Personal & Private Use Only X 44 इप्यारया पाहुडा २९३ www.jainelibrary.org
SR No.600254
Book TitleAgam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_chandrapragnapti
File Size8 MB
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