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सत्र
अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
चाहस चणिया भागा सेसा ॥त समयचं मरे केणं प.वखतेणं जोगं जीतति? ता पुणवसुणा, पुणवमुषण उपणतीस मुहुत्ता एकवीसं वावट्ठी भागा मुहुत्तस्स बावट्ठी भाग सत्तसट्ठिया उत्ता, सुडयालोसं चुणिया भागा सेसा ॥ ५ ॥ ता एतेसिणं पंचण्हं संवच्छराणं पंचमस्म अभिवाड्डिय संवच्छरस्स के आदि आहितति वदेजा ? ताणं चउत्थस्ल चंदसंबच्छरस्म पजवासणे सण पंचमस्स अभि
संवच्छरस्स आदि अणतरपुरेकडे समर ॥ तोसेण किं पञ्जवासते आहतति वदज्जा ? है ? अहो गौतम ! उस समय में स्यं पुनर्वसु नक्षत्र का साथ ये ग करता है. यह नक्षत्र २१ मुन (२१ भाग बासाठिये एक मुहूर्त के ४७ चूर्माणये भाग ६७ ये गर्य साथ शेष रहे और मूर्य नक्षत्र ३२३ मुहूर्न १८ भाग ६२ या मूर्य माथ शेष रहे तव चौथा चंद्र संबर र संपूर्ण होवे, इस की विधि पूर्वोक्त जैम जानना. परंतु यहां दूसरी ध्यराशि को ४९ से गुणना क्यों कि चौथा चंद्र मंवत्सर ४९ मास में पूर्ण होता है ॥ ५ ॥ अहो भगवन ! इन पांच संवत्सर में पांचवा अभिवर्धन संवत्सर की आदि कहां ईकही है ? अहो गौतम ! जो चोया चंद्र संवत्सर का पर्यवसान है उस से अनंतर पूर्वक्त समय में
पांचवा अभिवर्धन संवार की आदि कही है. अहो भगवन् ! इस का पर्यवसान कहां कहा है ? अहो । गौतम.! पहिला चंद्र मात्सर की आदि है उस से अनंता पश्चात्कृत समयमें पांचवा अभिवर्धन संवत्सर
प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदवसहायजी ज्वाल' प्रमाद नी .
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