________________
सूत्र
अथ
4 सप्तदश चंद्र प्रज्ञप्ति सूत्र पष्ठ उपाङ्ग +
ता एतेति ण्टं च्रा वउत्थस्स चंद संवच्छरस्स के आदि ? ता जेणं तच्चस्स अभियविष्ठर से चउत्थस्स चंदसंवच्छरम्स आदि. अनंतर पुरेकडे समये ॥ तीस किं पनवासित आहितेति वदेजा ? ता जेणं पंचमस्त अभिवडिय संवास आदि लेणं च वच्छरस्स पज्जवासणे अनंतर पच्छाकडे समये ॥ तं समयं च चंदे के? ता उत्तराहिं असाढाहिं उत्तराणं असादाणं उणयालीगं मुहत्ता चत्तालीमच बाबट्टी भागा मुहुत्तस्स, वावडी भागं सत्तसट्टिया छेत्ता
३
पूर्व
में पूर्ण होता है || ४ || अहो भगवन् ! इन पांच संवत्सर में चौथा चंद्र संवत्सर की कह आदि कही ? अ गौतम ! अभिवर्धन संवत्सर का पर्यवसान जहां कहा है उस से अनंतर से बया मंद्र सरस्सर की आदि कही है.. अहो भगवन् ! चौथा चंद्र संवत्सर का पत्रसान को कहा है ? गौतम ! जो पांचवा अभिवर्धन संवत्सर की आदि है उस से अनंतर पाक समय में दोष कहा है. अहो भगवन् ! चौथा मंद्र संत्रस्सर के अंत में चंद्र कोसका साथ योग करता है ? अहो गौतम ! उत्तराषाढा नक्षत्र की साथ योग करता है. यह उन ३१४० भाग ६२ ये १४ चूरणिये भाग ६७ ये शेष रहे तब चौथा चंद्र मंत्र संपूर्ण होते. असे भगवन् ! उस समय सूर्य कौनसे नक्षत्र की साथ योग करता
का
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
** इग्यारवा पाहुडा 42 40
२९१
www.jainelibrary.org